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आइडिया पैनल अक्टूबर से बंद कर देगी गूगल, ब्लॉगर को ब्लॉग के बीटा वर्जन में ये फीचर नहीं दिखेगा

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आइडियाज पैनल ब्लॉग लिखने वाले ब्लॉगर्स के लिए यह एक बुरी खबर है। दरअसल, गूगल अपने आइडिया पैनल या यूं कहें कि आइडियाज पैनल टूल को वापस लेने जा रहा है। यह टूल अक्टूबर से ब्लॉगर्स को दिखाई नहीं देगा। आइडिया पैनल क्या है? आइडिया पैनल ब्लॉग में कहां दिखाई देता है? आइडिया पैनल किस काम आता है? आइडिया पैनल को कैसे इस्तेमाल करें? ब्लॉग में आइडिया पैनल नहीं दिखाई देने का क्या मतलब है? अगर आप भी ऐसे तमाम सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं तो इस पोस्ट को आखिर तक पढ़िए, आपके सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे। वो भी आसान भाषा में। आइए सबसे पहले जानते हैं कि आइडिया पैनल क्या है?  आइडिया पैनल असल में गूगल का बनाया हुआ एक टूल है। यह ब्लॉग लिखने वाले ब्लॉगर्स की मदद के लिए बनाया गया था। गूगल के ब्लॉगर प्लेटफॉर्म के लिए यह नया टूल लॉन्च किया गया था। अब सवाल यह है कि ब्लॉग में आइडिया पैनल टूल ब्लॉगर को कहां दिखाई देता है?  इसका सीधा जवाब यह है कि आइडिया पैनल टूल बीटा वर्जन वाले ब्लॉग में दिखाई देता है। यह ब्लॉगर को उसकी पोस्ट वाले सेक्शन पर क्लिक करने के बाद दायीं तरफ यानी राइट साइड में दिखाई पड़ता है। आइडिया पैनल ट

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पीएफआई पर पांच साल का प्रतिबंध, सही है...

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आतंकी फंडिंग और ऐसी ही दूसरी तरह की गतिविधियों में लिप्त होने के कारण से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई और उससे जुड़े हुए संगठनों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। केंद्र सरकार ने पीएफआई जैसे संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाकर एक संदेश देने की कोशिश की है। संदेश ये कि देश को तोड़ने के प्रयास सफल नहीं होने दिए जाएंगे। यह सही भी है।  देश को तोड़ने की कोशिश करने वाला कोई भी हो, उसे ठीक-ठीक सबक दिया ही जाना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि आने पीढ़ी भी अपने आसपास एक सुरक्षित माहौल देख सके। वैसे कुछ मुस्लिम संगठनों ने भी पीएफआई पर लगाए गए प्रतिबंध का स्वागत किया है। यह अच्छा है। कारण कि चंद लोगों की वजह से बाकी नेकदिल इंसानों की छवि खराब होती है।  छवि खराब करने के ऐसे जतन को जितना हो सके उतना हतोत्साहित किया जाना चाहिए। आखिर मिलजुलकर रहने में बुराई क्या है? सोशल मीडिया के दौर में कई उदाहरण वीडियो की शक्ल में देखने को मिल जाते हैं, जिनमें आपसी भाईचारे का संदेश दिया होता है। इंसान की इंसानियत नहीं मरनी चाहिए, फिर चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। पीएफआई पर हुई कार्रवाई से जुड़ा एक तथ्य काफी अहम है। दर

आपबीती : कोरोना महामारी से जूझते हुए हम

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कोरोना वायरस जब से अपने नए-नए स्वरूपों के साथ पूरी दुनिया में फैला है, इसने लाखों लोगों की जान ले ली है। बस इतना ही नहीं, यह आज भी लाखों लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है। कारण कि इसकी वजह से कई लोगों ने जान गंवाई है तो वहीं कई लोग परेशानियां झेल रहे हैं।  ऐसे लोगों की फहरिस्त में अब मेरा नाम भी जुड़ गया है। हालांकि अभी तक तो सबकुछ ठीक ही है। जैसा कि मेरे डॉक्टर ने कहा- जान का जोखिम नहीं है। परंतु डॉक्टर की इस बात को सुनकर सतर्कता और सावधानी को कम नहीं किया जा सकता। हाल यह है कि रह-रहकर खांसी आ रही है। कभी तेज हो जाती है तो कभी धीमी।  खांसी के तेज होने पर डर सताने लगता है कि कहीं शरीर के अंदर कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं चल रही है। ऐसी गड़बड़ जिसके बारे में मैं खुद और डॉक्टर भी अनजान हैं। क्योंकि हमारी चिकित्सा व्यवस्था अभी इतनी आधुनिक नहीं हुई है कि शरीर के अंदर की हर बारीक से बारीक गड़बड़ी को पकड़ सके।  जैसी कि विज्ञान फंतासी से ओतप्रोत फिल्मों में हमें दिखाया जाता है। बहरहाल, मुझे लगता है कि यह सारी बातें लिखकर कम से कम मैं अपने जहन और मन को तो शांत कर पाऊंगा। अपने अंदर की बातों का जाहि

स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ी 6 जरूरी बातें

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जब स्वास्थ्य और पोषण की बात आती है तो भ्रमित होना आसान है। यहां तक ​​​​कि योग्य विशेषज्ञ भी अक्सर विरोधी राय रखते हैं, जिससे यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि आपको वास्तव में अपने स्वास्थ्य को अनुकूलित करने के लिए क्या करना चाहिए। फिर भी, तमाम असहमतियों के बावजूद, कई वेलनेस टिप्स अनुसंधान द्वारा अच्छी तरह से समर्थित हैं। यहां 28 स्वास्थ्य और पोषण संबंधी युक्तियां दी गई हैं जो वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित हैं। 1. मीठा पेय सीमित करें सोडा, फलों के रस और मीठी चाय जैसे सुगन्धित पेय अमेरिकी आहार में अतिरिक्त चीनी का प्राथमिक स्रोत हैं। दुर्भाग्य से, कई अध्ययनों के निष्कर्ष बताते हैं कि चीनी-मीठे पेय से हृदय रोग और टाइप 2 मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है, यहां तक ​​कि उन लोगों में भी जिनके शरीर में अतिरिक्त वसा नहीं है। चीनी-मीठे पेय भी बच्चों के लिए विशिष्ट रूप से हानिकारक होते हैं, क्योंकि वे न केवल बच्चों में मोटापे में योगदान कर सकते हैं, बल्कि ऐसी स्थितियों में भी योगदान दे सकते हैं जो आमतौर पर वयस्कता तक विकसित नहीं होती हैं, जैसे टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप और गैर-मादक वसायुक्त यकृत रोग। स

विकास दुबे एन्काउंटर में ढेर, जिसका अंदेशा था वही हुआ

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एन्काउंटर में मारा गया हिस्ट्रीसीटर विकास दुबे और दूसरी तस्वीर में विकास की मां। उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाला विकास दुबे आखिरकार एन्काउंटर में मारा गया। मध्यप्रदेश में उसे पुलिस ने उज्जैन से गिरफ्तार किया था। इसके बाद यूपी एसटीएफ उसे उज्जैन से कानपुर ले जा रही थी। रास्ते में गाड़ी पलटी, विकास ने एक पुलिसवाले की पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश की, बस फिर क्या था हो गया एन्काउंटर..। विकास दुबे के एन्काउंटर की ये कहानी बड़ी ही सिंपल है। लेकिन इसमें कई लूपहोल भी हैं। जो विकास दुबे के एन्काउंटर को लेकर कई सवाल भी खड़े करते हैं। हालांकि पुलिस ने कहा है कि वो लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सारे सवालों का जवाब देगी। अरे भई, जवाब कानपुर में ही दे लो। कोसों दूर जाने की क्या जरूरत है। कानपुर में भी सारे मीडिया वाले इकट्ठा हो जाएंगे। आप बस इशारा तो करो। और फिर जो पुलिसवाले इस एन्काउंटर में शामिल हैं, या घायल हुए हैं, वो सब कानपुर में ही तो हैं। जो पूछना या बताना है, यहीं कर लो। खैर, पुलिस जो चाहे करे। बस सवालों के सही और जिज्ञासा को शां​त करने वाले जवाब दे दे। वैस

अपराधी बेटा, पर सजा भुगत रही मां

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बदमाश विकास और उसकी मां सरला कानपुर में हिस्ट्रीशीटर बदमाश विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई। इस दौरान आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। और एन्काउंटर की खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई। खैर ये जो हुआ बुरा हुआ। परंतु हमारे देश में राजनीति और अपराध के गठजोड़ की बात किसी से छिपी नहीं है। देश के कई नेताओं पर मुकदमे दर्ज हैं, ये सब जानते हैं, फिर भी उन्हें वोट तो देते ही हैं। पर ये छोड़िए, गौर करने वाली बात तो दूसरी है। वो ये कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद सरकार ने बदमाश विकास का घर ही तोड़ दिया। जेसीबी ऐसी चली कि पूरा घर तहस-नहस हो गया। इंटरनेट पर आप इस टूटते घर का वीडियो भी देख सकते हैं। मुझे इस घर में रहने वाले किसी शख्स से रब्ता नहीं है। लेकिन घर तोड़े जाने के दृश्य के साथ विकास की मां की तस्वीर भी देखी। घर टूटने के बाद उन्होंने कई सारी बातें कहीं। इनमें से खास वो बात है जिसमें वह सवाल उठा रही हैं। सवाल ये कि विकास इतना ही बुरा था तो फिर राजनीतिक पार्टियों ने उसे अपने दल में शामिल क्यों​ किया? अब माता जी का सवाल इसलिए वाजिब जान पड़ता है क्योंकि जानकारी तो यही निकलकर सामने

पिंकू की प्रेरणा 3

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प्रतीकात्मक फोटो पिंकू को यहां-वहां खुरपी मारते हुए थोड़ा समय बीत जाने के बाद आखिरकार रामसुख ने अपना सवाल दाग ही दिया। उसने पूछा- आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? पिंकू ने तपाक से कहा- बड़ा होकर मैं माली बनूंगा। ये सुनते ही रामसुख एक पल को अवाक रह गया। उसने पिंकू से कहा- नहीं भइया, माली मत बनना। रामसुख की इस बात के पीछे एक अलग ही मर्म छिपा हुआ था। क्योंकि जवाब देने से ठीक पहले उसके जहन में वो सभी कारण उठ खड़े हुए थे, जो चाहते थे कि वो पिंकू से साफ कहे कि जीवन में कुछ भी बनना पर माली मत बनना। रामसुख को लोग फूल उगाते, पौधों को खाद-पानी देते और मिट्टी को संवारते हुए देखते हैं। लेकिन वे यह नहीं जानते कि इसमें कितनी मेहनत लगती है। कितना कष्ट सहना पड़ता है। खैर, इसके बावजूद फूल, पेड़-पौधों की सेवा करके मन तो भर जाता है पर पेट का क्या करें। इसे कहां ले जाएं। फिर घर में बच्चे भी तो हैं, मां-बहन और पत्नी भी तो है। इतनी कड़ी मेहनत के बाद भी उनके लिए दो निवाले जुटाना भी कितना दुश्वार है, यह सिर्फ रामसुख ही जानता है। क्योंकि कई रातें उसने पानी पीकर ही गुजारी हैं। रामसुख के जोर देकर नहीं

पिंकू की प्रेरणा 2

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प्रतीकात्मक फोटो बगीचे को सजाने में रामसुख की मेहनत साफ दिखाई देती थी। वह मन लगाके काम किया करता था। बहरहाल, पिंकू लकड़ी के टुकड़े पर बैठा रामसुख की तरफ देख रहा था, वह जानना चाहता था कि बगीचे में काम कैसे होता है। हालांकि इसके पीछे उसके बाल मन की जमीन में खुद अपने हाथों से खुरपी चलाने की खुराफाती सोच थी।  पिंकू चाहता था कि वह खुरपी लेकर जमीन खोदे और इस काम में उसे कितना मजा आएगा। यही सोच-सोचकर वह मंद-मंद मुस्कुरा भी रहा था। रामसुख ने भी उसके मन की बात उसके चेहरे पर पढ़ ली थी, फिर भी कुछ नहीं कहा और अपने काम में जुटा रहा।  थोड़ी देर बात जब पिंकू के सब्र का बांध टूटने सा लगा तो खुद ही तपाक से बोला, रामसुख चाचा ये खुरपी ऐसे क्यों चलाते हैं, क्या तुम मुझे सिखा दोगे। रामसुख ने पिंकू की तरफ देखा और एक गहरी सांस लेकर कहा- अरे बेटा तुम क्यों ये सब करना चाहते हो। अच्छे से पढ़ो-लिखो और बड़े अफसर बनो। इस मिट्टी में तुम्हारे लिया क्या रखा है। देखो कपड़े तक गंदे (अपने कपड़े दिखाते हुए) हो जाते हैं।  पिंकू ने ये बातें सुन तो लीं, लेकिन वो मानने वाला कहां था। उसे तो खुरपी चलाने के ल

पिंकू की प्रेरणा 1

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प्रतीकात्मक फोटो बात उन दिनों की है जब रामसुख जीवन के मध्य पड़ाव में था। आज के हिसाब से यदि इंसान की औसत उम्र साठ बरस की मानें तो वह यही कोई तीस से पैंतीस बरस के बीच रहा होगा। क्योंकि उसके जनम की सही-सही तारीख तो खुद उसे भी नहीं मालूम थी। उसकी मां विमला कहती थीं कि जिस साल इंदिरा गांधी मरीं, उसी साल तेरा जनम हुआ, जब गर्मियां बीत गई थीं और सर्द रातों का मौसम अपनी बाल अवस्था में था। रामसुख कहने को तो माली का काम करता था। लेकिन उसकी बातें बड़े दार्शनिकों जैसी थीं। क्योंकि उसने जिंदगी के फलसफे को बेहद गहराई से समझ लिया था। एक बात और, उसे बच्चों से बड़ा लगाव था। उनके साथ खेलने, हंसने-बोलने में उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती थी। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। खैर, एक दिन रामसुख अपने मालिक गौतम के बगीचे में पौधों को पानी दे रहा था। तभी उसके सिर पर कोई चीज जोर से टकराई, एक पल को तो वह जमीन पर गिरने ही वाला था, पर अपने आपको संभाल लिया।  पीछे से सॉरी अंकल, सॉरी अंकल कहते हुए पिंकू दौड़ता हुआ उसके पास आकर रुका और पूछने लगा कि कहीं आपको चोट तो नहीं लगी। रामसुख ने कहा, नहीं पिंकू

थॉर्डिस और टॉम के साहस को सलाम

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प्रतीकात्मक फोटो दोस्तों, अमूमन देखने को मिलता है कि रेप पीड़िताएं अवसादग्रस्त हो जाती हैं। आत्महत्या कर लेती हैं। या फिर गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाती हैं। समाज उन्हें सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता, उनका दोष न होते हुए भी उन्हें एक दोषी की तरह नकार दिया जाता है। यहां तक कि दोषी कोर्ट-कचहरी से साक्ष्यों के अभाव में बरी तक हो जाते हैं। यह स्थिति लगभग-लगभग दुनिया के हर हिस्से में है। पर अमेरिकी राज्य सैन फ्रांसिस्को से आई एक खबर ने दुनिया भर की महिलाओं को साहस के साथ जीने की राह दिखाई है। जी हां, यहां एक रेप पीड़ित महिला ने स्वयं आगे आकर अपनी कहानी लोगों को बताई। सिर्फ यही नहीं रेप करने वाला शख्स भी उनके साथ इस कहानी को सुनाने के लिए आगे आया। दोनों ने मिलकर रेप की घटना के बाद गुजरे वक्त और उस दौरान मिले अनुभवों को लोगों के साथ साझा किया। यह अपने आप में एक साहसपूर्ण कार्य है, जिसकी सराहना किए बगैर नहीं रहा जा सकता। एक महिला का इस तरह अपनी कहानी बयां करना उसके लिए कोई आसान नहीं रहा होगा। यह कहानी है थॉर्डिस एल्वा की। जो कि 20 साल पूर्व 1996 में रेप का शिकार हुईं। उनके साथ रेप

सुप्रीम कोर्ट का चला डंडा, ‘ताऊ’ पड़ गया ठंडा

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सुप्रीम कोर्ट ने फिर गेंद पवेलियन के बाहर भेजी  प्रतीकात्मक फोटो सुप्रीम कोर्ट ने फिर गेंद पवेलियन के बाहर भेजी   सुप्रीम कोर्ट ने दो बड़े फैसले दिए हैं। पहला लोकतंत्र की रक्षा के लिए अहम है। जबकि दूसरा खेलों के वि कास में मील के पत्थर की तरह है। इन दो फैसलों ने भारत जैसे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को और मजबूती देने का काम किया है। इन फैसलों के दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे इसमें कोई शक नहीं। आईए जानते हैं ये दो बड़े फैसले क्या हैं..... 1. सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि धर्म, जाति, मत और संप्रदाय के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता। इन आधारों पर वोट मांगना चुनाव कानूनों के तहत भ्रष्ट व्यवहार होगा जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसा करने वाले उम्मीदवार का चुनाव रद्द किया जा सकता है। 2. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) प्रेसिडेंट के पद से अनुराग ठाकुर और सेक्रेटरी के पद से अजय शिर्के को हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि उसके आदेश के बाद भी बीसीसीआई में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू नहीं करने के लिए ये दोनों ही जिम्मेदार हैं। भई बात सीधी सी है, न

जयललिता का सच सामने आए

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प्रतीकात्मक फोटो तमिलनाडु की 6 बार सीएम रहीं जयललिता की मौत को लेकर मीडिया में कई सवाल तैर रहे हैं। यहां तक कि अब हाईकोर्ट ने भी सवाल उठा दिए हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में जांच की मांग लेकर दायर पिटीशन पर सुनवाई करते हुए ये सवाल उठाए हैं। बेशक अपने प्रिय नेता की मौत की खबर सुनने के बाद उनके प्रशंसकों को यह जानने का पूरा हक है कि आखिर मौत हुई कैसे। जबकि सबकुछ ठीक था। जयललिता खाना खा रही थीं। सामान्य हो रही थीं। हालत में सुधार आ रहा था। फिर ऐसा क्या हुआ जो उनका निधन हो गया। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जस्टिस वैद्यनाथन ने पूछा है कि "जांच के लिए जयललिता की बॉडी को बाहर क्यों नहीं निकाला जा सकता? मौत को लेकर मीडिया ने कई सवाल उठाए हैं। हमें भी शक है। पूरी सच्चाई सामने आनी ही चाहिए।" कोर्ट ने इस मामले में पीएमओ, होम-लॉ-पॉर्लियामेंट्री मिनिस्ट्री और सीबीआई को नोटिस जारी किया है। कार्डिएक अरेस्ट से हुई मौत जस्टिस वैद्यनाथन और जस्टिस पारथिबन की वेकेशन बेंच ने AIADMK पार्टी वर्कर पीए जोसेफ की पीआईएल पर सुनवाई की है। कोर्ट ने जयललिता को लेकर सीक्रेसी बरतने पर अपनी नाखु

नोटबंदी : गोलगप्पे के साथ गप्पें गोल

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प्रतीकात्मक फोटो नोटबंदी की चर्चा इन दिनों हर जगह है। कहा जा रहा है कालाधन निकलेगा। पर जो खबरें सामने आ रही हैं उनसे तो लगता है कि कालाधन और बढ़ गया है। आए दिन नए नोटों की खेप पकड़ी जा रही हैं। खैर, इस सब के बीच हमारे चुन्नू भइया काफी परेशान हैं। चुन्नू भइया गोलगप्पों के बड़े शौकीन हैं। शौक भी ऐसा कि दिन का खाना छोड़ गोलगप्पों से पेट भर लें और डकार भी न लें। यार-दोस्तों से मिलते हैं तो बस गोलगप्पे के ठेले पर महफिल जम जाती है। फिर तो बस गोलगप्पे पे गोलगप्पे आने दो बस।  चुन्नू भइया, नोटबंदी के बाद से परेशान इसलिए हैं कि पहले तो जेब भरी रहती थी। अब खाली है, क्योंकि एटीएम से नोट नहीं मिल रहे हैं। और तो और उनके यार-दोस्त भी कम खर्चीले नहीं थे। जेब में पैसा हो तो चवन्नी बचे रहने तक की परवाह नहीं करते। तो साहब, चुन्नू भइया का रोज की महफिल गोलगप्पे के ठेले पर चलती थी। महफिल में गोलगप्पों के साथ खूब गप्पें लगतीं। राजनीति से लेकर देश-दुनिया और समाज यहां तक कि प्रीत, प्रेम, प्यार, वासना के फर्क तक गोलगप्पों के साथ गोल-गोल हुए जाते और चटखारेदार पानी की तरह ज्ञान पीते-पिलाते जाते। 

नोटबंदी: चोर, चाय की चुस्की, बस चार साल चक्कर

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प्रतीकात्मक फोटो नोटबंदी क्या लागू हुई मानो इंसानी आफत टूट पड़ी। जी हां, जहां देखो नोटबंदी की चर्चा। कमाल ऊपर से ये कि कोई विरोध करे भी तो कैसे और कितना करे? खैर, राजनीतिक दलों ने तो फिर भी विरोध कर लिया पर आम आदमी ने चुपचाप इस फैसले को स्वीकार कर लिया। आखिर मरता क्या ना करता। भई, मेहनत से कमाए अपने पैसे जो हैं। ऊपर से देशभक्ति दिखाना आजकल शगल बन गया है। चलो ये सारी परेशानियां तो ठीक हैं। पर एक बात है जो पच नहीं रही है। बात ये कि सरकार कह रही है, जिसने कालाधन कमाया है खुद ही आकर 50 प्रतिशत सामने रख दे। बाकी 50 प्रतिशत ले जाए। वाह। क्या गजब की तरकीब है। चोर, चोरी करे और आधा माल कोतवाल के सामने पेश कर दे। न सजा न कोर्ट-कचहरी का झंझट। क्या करें साहब अपने देश में कहावत ही यही है कि- बाप बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया। आमधारणा है कि चोर चोरी करे और पकड़ा ना जाए, तो चोर नहीं। सरकार ने भी ऐसा ही तरीका अपनाया है। चोर चोरी करे माल में हिस्सा दे और सजा भी ना पाए। जो सजा मिले भी तो मामूली। (यहां एक उदाहरण देना चाहूंगा कि किसी ने 1 करोड़ रुपये कालाधन कमाया। कालाधन मतलब चोरी का पैसा भाईलोग

दो दिन में दो बदलावों ने बदल दी 'दुनिया'

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आज पूरी दुनिया दो बदलावों से हैरान है। पहला भारत में बड़े नोटों का बंद होना और दूसरा अमेरिका में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत। पिछले दो दिन में हुए इन दो बदलावों ने दुनिया को भी बदल दिया है। आने वाले समय में इन दो बदलावों से दुनिया और भी बदलेगी। इसके कारण कुछ इस प्रकार से हो सकते हैं... ट्रंप की जीत से क्या बदलाव होंगे प्रतीकात्मक फोटो अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत को कई तरह से देखा जा रहा है। जैसे कि इस जीत को भारत के लिए अच्छा और पाकिस्तान के लिए बुरा कहा जा रहा है। हालांकि ट्रंप की जीत से पूरी दुनिया हैरान है। हो भी क्यों न, इस जीत से पूरी दुनिया प्रभावित होगी। ठीक वैसे ही जैसे भारत में बड़े नोट के बंद होने की खबर से दुनियाभर के शेयर बाजार प्रभावित हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप की जीत से पूरी दुनिया की विदेश नीतियों पर असर पड़ेगा। खुद अमेरिका की विदेश नीति भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रहेगी। ट्रंप को इस्लामिक विरोधी माना जाता है। ऐसे में देश-दुनिया के तमाम इस्लामिक देशों पर असर पड़ेगा। उनके साथ अमेरिका अपने हितों के नजरिए से ही संबंध निभाता रहा है और अब तो ट्रंप के आने से