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सुप्रीम कोर्ट का चला डंडा, ‘ताऊ’ पड़ गया ठंडा

सुप्रीम कोर्ट ने फिर गेंद पवेलियन के बाहर भेजी  प्रतीकात्मक फोटो

सुप्रीम कोर्ट ने फिर गेंद पवेलियन के बाहर भेजी  

सुप्रीम कोर्ट ने दो बड़े फैसले दिए हैं। पहला लोकतंत्र की रक्षा के लिए अहम है। जबकि दूसरा खेलों के वि
कास में मील के पत्थर की तरह है। इन दो फैसलों ने भारत जैसे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को और मजबूती देने का काम किया है। इन फैसलों के दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे इसमें कोई शक नहीं। आईए जानते हैं ये दो बड़े फैसले क्या हैं.....

1. सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि धर्म, जाति, मत और संप्रदाय के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता। इन आधारों पर वोट मांगना चुनाव कानूनों के तहत भ्रष्ट व्यवहार होगा जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसा करने वाले उम्मीदवार का चुनाव रद्द किया जा सकता है।

2. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) प्रेसिडेंट के पद से अनुराग ठाकुर और सेक्रेटरी के पद से अजय शिर्के को हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि उसके आदेश के बाद भी बीसीसीआई में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू नहीं करने के लिए ये दोनों ही जिम्मेदार हैं।

भई बात सीधी सी है, नहीं सुधरोगे तो सुधार दिए जाओगे। ये बात मैं नहीं, बल्कि खुद सुप्रीम कोर्ट पूर्व में कह चुका है। सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से इस सवाल का जवाब मिलता है कि न्याय सिर्फ कागजी बाते नहीं है। यदि लोकतंत्र में कार्यपालिका और विधायिका ठीक तरह से अपना काम न करें तो तीसरी शक्ति न्यायपालिका उन्हें दुरुस्त कर देती है। आजादी के बाद संविधान निर्माताओं की ये सबसे बड़े नेमत है जो हम भारतीयों को मजबूत बनाती है। आईए इन फैसलों के बारे में विस्तार से जानते हैं.....

पहला फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है धर्म, जाति, मत और संप्रदाय के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता। इन आधारों पर वोट मांगना चुनाव कानूनों के तहत भ्रष्ट व्यवहार होगा जिसकी अनुमति नहीं है। ऐसा करने वाले उम्मीदवार का चुनाव रद्द किया जा सकता है।

4:3 के अनुपात में फैसला

मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ ने 4:3 के अनुपात से यह फैसला दिया। आरपी एक्ट में भ्रष्ट व्यवहार को परिभाषित करने वाली धारा 123 (3) में इस्तेमाल शब्द 'उसका धर्म' के संदर्भ में जस्टिस टीएस ठाकुर और तीन अन्य जजों एमबी लोकुर, एसए बोब्डे और एलएन राव ने तीन के मुकाबले चार के बहुमत से फैसला सुनाया। साथ ही कहा कि इसका मतलब मतदाताओं, उम्मीदवारों और उनके एजेंटों आदि समेत सभी के धर्म और जाति से है।

चुनाव में धर्म का कोई रोल नहीं

कोर्ट ने कहा कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है। लोग किसकी पूजा करते हैं, यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा का मामला है। इसलिए राज्य को इस गतिविधि में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं है।

क्या है धारा में 

सात जजों की पीठ ने यह फैसला हिंदुत्व मामले में विभिन्न पक्षों और विपक्षों की विस्तृत सुनवाई के बाद दिया। सुप्रीम कोर्ट इस सवाल की जांच कर रहा था कि क्या कोई धार्मिक नेता का अपने अनुयायियों से किसी दल विशेष या नेता को वोट देने की अपील करना आरपी एक्ट की धारा 123 के तहत चुनावी कदाचार है। इस धारा में लिखा हुआ है कि सिर्फ उम्मीदवार ही अपने धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकता, लेकिन उसके एजेंटें का धर्म के आधार पर वोट मांगने में कोई दिक्कत नहीं है।

तीन जजों का अल्पमत

तीन न्यायाधीशों यूयू ललित, एके गोयल और डीवाई चंद्रचूड़ का अल्पमत यह था कि 'उसका धर्म' का अभिप्राय सिर्फ उम्मीदवार के धर्म से है। वहीं कोर्ट ने कहा कि संविधान में कही नहीं लिखा है धर्म के नाम पर बातचीत या बहस नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

दूसरा फैसला 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) प्रेसिडेंट के पद से अनुराग ठाकुर और सेक्रेटरी के पद से अजय शिर्के को हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि उसके आदेश के बाद भी बीसीसीआई में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू नहीं करने के लिए ये दोनों ही जिम्मेदार हैं।

चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अगुआई वाली बेंच ने अनुराग से पूछा था कि आखिर उनके खिलाफ केस क्यों न चलाया जाए? इस फैसले पर अनुराग ठाकुर ने कहा कि अगर अदालत को लगता है कि बोर्ड रिटायर्ड जजों के नेतृत्व में अच्छा काम करेगा तो मैं उन्हें ऑल द बेस्ट कहना चाहता हूं।

पूरा मामला...

आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले के बाद बीसीसीआई में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2015 में जस्टिस आर.एम. लोढ़ा की अगुआई में 3 मेंबर वाली एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने 4 जनवरी 2016 को बीसीसीआई में सुधार के लिए कई अहम सिफारिशें रखीं। सुप्रीम कोर्ट ने इनमें से ज्यादातर सिफारिशों को मंजूर किया। साथ ही बीसीसीआई में इन्हें लागू करने के लिए बोर्ड को ऑफिशियल्स को ऑर्डर दिया। बीसीसीआई के ऑफिशियल्स ने इनमें से कुछ सिफारिशें मान लीं, लेकिन कुछ मंजूर नहीं कीं। सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को कमेटी के सुझावों को मंजूर करने के लिए 30 दिसंबर तक का आखिरी मौका दिया था। इस कमेटी की अहम सिफारिशों को मानने से बोर्ड ने इनकार कर दिया था। इसके बाद लोढ़ा कमेटी ने बोर्ड ऑफशियल्स को बर्खास्त करने की भी सिफारिश कर दी थी।

अब सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई प्रेसिडेंट अनुराग ठाकुर और बोर्ड सेक्रेटरी अजय शिर्के को उनकी पोस्ट से हटाते हुए कहा कि वे बोर्ड का काम तत्काल प्रभाव से छोड़ दें और उससे अलग हो जाएं। बीसीसीआई में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू नहीं करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग और शिर्के को ही जिम्मेदार माना। कोर्ट का कहना है कि ये सिफारिशों को लागू करने में अनाकानी कर रहे थे।

कोर्ट ने सीनियर वकील फली एस. नरीमन और एमिकस क्यूरी गोपाल सुब्रहमण्यम की दो मेंबर वाली कमेटी भी बनाई है। इन्हें उन लोगों के नाम सुझाने को कहा है, जो बोर्ड का कामकाज देखेंगे। अब केस की अगली सुनवाई 19 जनवरी को होगी।

फिलहाल बोर्ड के सबसे सीनियर वाइस प्रेसिडेंट बतौर प्रेसिडेंट और ज्वाइंट सेक्रेटरी बतौर सेक्रेटरी बीसीसीआई का कामकाज देखेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के सभी ऑफिशियल्स और स्टेट एसोसिएशंस को लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू करने के लिए लिखित में अंडरटेकिंग (हलफनामा) देने को कहा है। वे सिफारिशें नहीं मानते तो उन्हें भी पद छोड़ना पड़ेगा।

फैसले पर जस्टिस लोढ़ा ये बोले

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जस्टिस आर.एम. लोढ़ा ने कहा, "यह जांच के बाद के नतीजे हैं। बोर्ड ने कमेटी की सिफारिशों को नहीं माना था। इसलिए यह तो होना ही था। बीसीसीआई सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर को भी नहीं मान रहा था। यह क्रिकेट की जीत है। चिंता की कोई बात नहीं है। इससे खेल बेहतर होगा।"

अनुराग ठाकुर ये बोले

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अनुराग ने कहा, "अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि बीसीसीआई रिटायर्ड जजों की देखरेख में बेहतर काम करेगा तो मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं। मुझे यकीन है वे अच्छा काम करेंगे। मेरे लिए यह निजी लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह देश की एक स्पोर्ट्स बॉडी की ऑटोनोमी की लड़ाई थी। मैं देश के अन्य नागरिकों की तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करता हूं।"

अजय शिर्के ने क्या कहा

"इस फैसले पर मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। अगर यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि मैं सचिव नहीं रहूं तो इससे सरल क्या हो सकता है। बीसीसीआई में मेरा काम खत्म हो गया है। आखिर में बीसीसीआई सदस्यों से ही बनती है। यह मेरे या अध्यक्ष की बात नहीं थी, बल्कि यह सदस्यों की बात थी।"

योगेश साहू


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