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पिंकू की प्रेरणा 2

प्रतीकात्मक फोटो
बगीचे को सजाने में रामसुख की मेहनत साफ दिखाई देती थी। वह मन लगाके काम किया करता था। बहरहाल, पिंकू लकड़ी के टुकड़े पर बैठा रामसुख की तरफ देख रहा था, वह जानना चाहता था कि बगीचे में काम कैसे होता है। हालांकि इसके पीछे उसके बाल मन की जमीन में खुद अपने हाथों से खुरपी चलाने की खुराफाती सोच थी। 

पिंकू चाहता था कि वह खुरपी लेकर जमीन खोदे और इस काम में उसे कितना मजा आएगा। यही सोच-सोचकर वह मंद-मंद मुस्कुरा भी रहा था। रामसुख ने भी उसके मन की बात उसके चेहरे पर पढ़ ली थी, फिर भी कुछ नहीं कहा और अपने काम में जुटा रहा। 

थोड़ी देर बात जब पिंकू के सब्र का बांध टूटने सा लगा तो खुद ही तपाक से बोला, रामसुख चाचा ये खुरपी ऐसे क्यों चलाते हैं, क्या तुम मुझे सिखा दोगे। रामसुख ने पिंकू की तरफ देखा और एक गहरी सांस लेकर कहा- अरे बेटा तुम क्यों ये सब करना चाहते हो। अच्छे से पढ़ो-लिखो और बड़े अफसर बनो। इस मिट्टी में तुम्हारे लिया क्या रखा है। देखो कपड़े तक गंदे (अपने कपड़े दिखाते हुए) हो जाते हैं। 

पिंकू ने ये बातें सुन तो लीं, लेकिन वो मानने वाला कहां था। उसे तो खुरपी चलाने के लिए मानो जैसे हाथों में खुजली हो रही थी। बस आव देखा ना ताव, रामसुख के झोले में पड़ी दूसरी खुरपी उठा लाया और रामसुख के थोड़े पास आकर बैठ गया जमीन पर खोदने। ऐसा करने अब रामसुख ने भी उसे नहीं रोका, क्योंकि वो समझ गया था। यदि अबकी बार पिंकू को टोका तो वह नाराज और दुखी हो जाएगा। क्योंकि आखिर है तो बाल मन ही।

तो साहब पिंकू ने जमीन पर यहां-वहां खुरपी मारना शुरू किया। खुरपी कभी यहां फिसलती तो कभी वहां। रामसुख चुपचाप यह देख रहा था और मन ही मन मुस्कुरा भी रहा था। ऐसी बाल मन की अटखेली उसे सालों बाद देखने को मिली थी। कारण कि अब तक उसने जहां भी काम किया, वहां घर में कोई बच्चा नहीं था। जारी है...

- योगेश साहू

पिंकू की प्रेरणा 1



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