आपबीती : कोरोना महामारी से जूझते हुए हम
ऐसे लोगों की फहरिस्त में अब मेरा नाम भी जुड़ गया है। हालांकि अभी तक तो सबकुछ ठीक ही है। जैसा कि मेरे डॉक्टर ने कहा- जान का जोखिम नहीं है। परंतु डॉक्टर की इस बात को सुनकर सतर्कता और सावधानी को कम नहीं किया जा सकता। हाल यह है कि रह-रहकर खांसी आ रही है। कभी तेज हो जाती है तो कभी धीमी।
खांसी के तेज होने पर डर सताने लगता है कि कहीं शरीर के अंदर कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं चल रही है। ऐसी गड़बड़ जिसके बारे में मैं खुद और डॉक्टर भी अनजान हैं। क्योंकि हमारी चिकित्सा व्यवस्था अभी इतनी आधुनिक नहीं हुई है कि शरीर के अंदर की हर बारीक से बारीक गड़बड़ी को पकड़ सके।
जैसी कि विज्ञान फंतासी से ओतप्रोत फिल्मों में हमें दिखाया जाता है। बहरहाल, मुझे लगता है कि यह सारी बातें लिखकर कम से कम मैं अपने जहन और मन को तो शांत कर पाऊंगा। अपने अंदर की बातों का जाहिर कर देने से मन हल्का महसूस करने लगता है। ये जो भारीपन जहन में आ गया है इसे दूर करने का यही एकमात्र रास्ता मुझे दिखाई दे रहा है।
उम्मीद है कि सबकुछ ठीक रहे। जीवन में अभी काफी कुछ करना बाकी है। सोचता हूं कि कहीं कोरोना उन सब चीजों को करने से पहले ही कहीं रास्ता न काट दे। कोरोना से जुड़ी तमाम खबरें और लेख पढ़ने के बावजूद भी ऐसा लगता है कि हम आज भी इसके बारे में कुछ नहीं जानते।
अगर चीन जैसे देश अपनी महत्वाकांक्षाओं को मानव जाति को नुकसान पहुंचने जैसे हालात बनने तक आगे न बढ़ने देते तो शायद आज दुनिया की तस्वीर कुछ और ही होती। हम वही सीमा विवाद, धर्म-जाति के दंश, चुनाव, दंगे, आपसी बहस जैसी चीजों में उलझे हुए रहते।
मुमकिन है ये दुनिया वापस अपनी उसी पटरी पर लौट जाए, परंतु तब तक हिम्मत बांधे रखना जरूरी है। इस कोरोना ने कमर तोड़ दी है। लक्षण एक समान होते तो भी कोई बात थी, हमारे वैज्ञानिक इसका सफल इलाज ढूंढ लेते।
परंतु अब तक जो इलाज, टीके मिले हैं, वह सब मुकम्मल रूप से इससे पीछा छुड़ाने में कारगर हैं, इस बात को सौ फीसदी प्रमाणित ढंग से या यूं कहूं कि निश्चित तौर पर कहना मुश्किल है। काश कि इसे किसी जादू की छड़ी से एक पल में गायब कर सकते तो बेहतर होता।
योगेश साहू
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