पीएफआई पर पांच साल का प्रतिबंध, सही है...
देश को तोड़ने की कोशिश करने वाला कोई भी हो, उसे ठीक-ठीक सबक दिया ही जाना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि आने पीढ़ी भी अपने आसपास एक सुरक्षित माहौल देख सके। वैसे कुछ मुस्लिम संगठनों ने भी पीएफआई पर लगाए गए प्रतिबंध का स्वागत किया है। यह अच्छा है। कारण कि चंद लोगों की वजह से बाकी नेकदिल इंसानों की छवि खराब होती है।
छवि खराब करने के ऐसे जतन को जितना हो सके उतना हतोत्साहित किया जाना चाहिए। आखिर मिलजुलकर रहने में बुराई क्या है? सोशल मीडिया के दौर में कई उदाहरण वीडियो की शक्ल में देखने को मिल जाते हैं, जिनमें आपसी भाईचारे का संदेश दिया होता है। इंसान की इंसानियत नहीं मरनी चाहिए, फिर चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
पीएफआई पर हुई कार्रवाई से जुड़ा एक तथ्य काफी अहम है। दरअसल, इंटेलिजेंस ब्यूरो ने साल 2011 में ही बता दिया था कि यह संगठन केरल और कर्नाटक में अपने सदस्यों को हथियार इस्तेमाल करना सिखा रहा है। यह जानकारी होने के बाद भी कार्रवाई अब जाकर हुई है। अगर बात आत्मसुरक्षा की हो, वहां तक तो ठीक है, परंतु हिंसा और उन्माद फैलाने की कोशिशों को किसी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता।
सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) और आईएम (इंडियन मुजाहिदीन) पर लगे प्रतिबंध के बाद पीएफआई देश में तेजी से उभरा था। दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों-केरल के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक के फोरम ऑफ डिग्निटी और तमिलनाडु के मनिता नीति पसाराई को मिलाकर पीएफआई का गठन किया गया था। यह खुद को अल्पसंख्यकों, दलितों और वंचित समुदायों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संगठन के रूप में प्रचारित करता था।
पिछले कुछ दिनों से एनआईए और ईडी के छापे मारे जाने की खबरें आती रही हैं। कई गिरफ्तारियां भी हुईं। मीडिया में इन खबरों पर हो हल्ला भी काफी मचा है। भले ही कुछ हद तक लगाम कसी जा चुकी है। लेकिन खींचे रखना जरूरी है। देश की सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की कोशिश होनी चाहिए कि ऐसे किसी संगठन को पनपने की जमीन ही न मिल पाए। सिर्फ यही नहीं, नफरत फैलाने वाली भाषा का इस्तेमाल करने वालों पर भी शिकंजा कसा जाना चाहिए। याद रहे, ऐसे लोग दोनों तरफ हैं।
- योगेश साहू
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