नोटबंदी : गोलगप्पे के साथ गप्पें गोल
प्रतीकात्मक फोटो |
नोटबंदी की चर्चा इन दिनों हर जगह है। कहा जा रहा है कालाधन निकलेगा। पर जो खबरें सामने आ रही हैं उनसे तो लगता है कि कालाधन और बढ़ गया है। आए दिन नए नोटों की खेप पकड़ी जा रही हैं।
खैर, इस सब के बीच हमारे चुन्नू भइया काफी परेशान हैं। चुन्नू भइया गोलगप्पों के बड़े शौकीन हैं। शौक भी ऐसा कि दिन का खाना छोड़ गोलगप्पों से पेट भर लें और डकार भी न लें। यार-दोस्तों से मिलते हैं तो बस गोलगप्पे के ठेले पर महफिल जम जाती है। फिर तो बस गोलगप्पे पे गोलगप्पे आने दो बस।
चुन्नू भइया, नोटबंदी के बाद से परेशान इसलिए हैं कि पहले तो जेब भरी रहती थी। अब खाली है, क्योंकि एटीएम से नोट नहीं मिल रहे हैं। और तो और उनके यार-दोस्त भी कम खर्चीले नहीं थे। जेब में पैसा हो तो चवन्नी बचे रहने तक की परवाह नहीं करते।
तो साहब, चुन्नू भइया का रोज की महफिल गोलगप्पे के ठेले पर चलती थी। महफिल में गोलगप्पों के साथ खूब गप्पें लगतीं। राजनीति से लेकर देश-दुनिया और समाज यहां तक कि प्रीत, प्रेम, प्यार, वासना के फर्क तक गोलगप्पों के साथ गोल-गोल हुए जाते और चटखारेदार पानी की तरह ज्ञान पीते-पिलाते जाते।
अब जब से नोटबंदी आई है, जेब ढीली है। गोलगप्पों के साथ गप्पों की यह महफिल ठंडी पड़ गई है। खोमचे वाला भी उधार खिलाने को तैरूार नहीं है। अब भला जाएं भी तो कहां।
चुन्नू भइया, एक दिन कहने लगे, यार भाई जब से ये नोटबंदी आई है, गोलगप्पे का स्वाद तो जैसे जीभ भूल ही गई है। रोज चटखारेदार पानी की याद आते ही मुंह गीला हो जाता है। अब तो उस दिन को कोसते हैं जब वोट देने सुबह-सुबह घर से निकल पड़े थे। हमें क्या पता था, अपनी ही जेब ढीली हो जाएगी। ऊपर से कड़की के दिनों में कड़कड़ाती ठंड ने मार रखा है। हम तो भाई बस पचास दिन पूरे होने के इंतजार में हैं। तब फिर महफिल गुलजार होगी।
- योगेश साहू
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