अरे कोई तो रोको, कोई तो टोको, बर्तन चीख चीखकर कह रहे हैं। वैसे भी दिन में तो कोई सोता नहीं, पर जब तुम दोपहर में थोड़ी देर के लिए ही सही इस घर की देहरी लांघ जाते हो, तो हम थोड़ा आराम फर्मा लिया करते हैं। घर के दरवाजे से घुसते ही सामने रखी सभी कुर्सियां एक-दूसरे से चुहलबाजी करती हैं। उनकी बातों में मोहल्ले की महिलाओं की भांति अपनी-अपनी रामकथा है। हर कथा के बाद तुम्हारे ही घुर्राटों (खर्राटे) का जिक्र होता है, कैसे लेते हो तुम घुर्राटे। दाईं ओर बगल के रसोईघर में चूल्हे पर रखा कुकर अपनी सीटी की तेज कर्कश आवाज के बावजूद तुम्हारे खर्राटों के सामने नतमस्तक हो जाता है। अपने स्थान पर पड़े हुए वह रोज सोचा करता है कि ये खर्राटे कहां से आते हैं। ये कौन सी प्रजाति (ब्रांड) का कुकर है, जिसकी आवाज मेरी सीटी से भी तेज है। कमरे में लगा पंखा रात में अपनी स्पीड बढ़ाकर इन खर्राटों की आवाज को दबाने की नाकाम सी कोशिश करता है। कहीं, वह नट-बोल्ट ढीला होने के कारण तुम्हारे ही सिर पर आकर न गिर पड़े। यदि ऐसा हुआ तो खर्राटों की आवाज कुछ हद तक दबाने वाला इस घर का यह वीर सिपाही एक दिन शहीद हो जाएगा। और फिर
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