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नोटबंदी: चोर, चाय की चुस्की, बस चार साल चक्कर

प्रतीकात्मक फोटो
नोटबंदी क्या लागू हुई मानो इंसानी आफत टूट पड़ी। जी हां, जहां देखो नोटबंदी की चर्चा। कमाल ऊपर से ये कि कोई विरोध करे भी तो कैसे और कितना करे? खैर, राजनीतिक दलों ने तो फिर भी विरोध कर लिया पर आम आदमी ने चुपचाप इस फैसले को स्वीकार कर लिया। आखिर मरता क्या ना करता। भई, मेहनत से कमाए अपने पैसे जो हैं। ऊपर से देशभक्ति दिखाना आजकल शगल बन गया है।

चलो ये सारी परेशानियां तो ठीक हैं। पर एक बात है जो पच नहीं रही है। बात ये कि सरकार कह रही है, जिसने कालाधन कमाया है खुद ही आकर 50 प्रतिशत सामने रख दे। बाकी 50 प्रतिशत ले जाए। वाह। क्या गजब की तरकीब है। चोर, चोरी करे और आधा माल कोतवाल के सामने पेश कर दे। न सजा न कोर्ट-कचहरी का झंझट। क्या करें साहब अपने देश में कहावत ही यही है कि- बाप बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया। आमधारणा है कि चोर चोरी करे और पकड़ा ना जाए, तो चोर नहीं। सरकार ने भी ऐसा ही तरीका अपनाया है। चोर चोरी करे माल में हिस्सा दे और सजा भी ना पाए। जो सजा मिले भी तो मामूली।

(यहां एक उदाहरण देना चाहूंगा कि किसी ने 1 करोड़ रुपये कालाधन कमाया। कालाधन मतलब चोरी का पैसा भाईलोग। तो अब सरकार ने कहा 50 प्रतिशत दे दो। यानि 50 लाख सरकार के पास गए। इसमें से बचे 50 लाख में से 25 प्रतिशत यानि 25 लाख गरीबों के कल्याण में लगेंगे। इसके बाद जुर्माना आदि लगेगा। फिर इसमें से बची राशि कालाधन घोषित करने वाला शख्स चार साल बाद निकाल पाएगा। इसका मतलब चोर आया चोरी का खुलासा किया और चार साल बाद कुछ पैसा लेकर चला गया।)

खैर, इस सबमें एक बात बड़ी खास है कि नोटबंदी से कालाधन कम ही सही पर बाहर जरूर आ रहा है। इसे छोड़ भी दें तो, सालों से घरों में रखी रकम जो डंप हो रही थी, वह जरूर बाहर आ गई। बाजार में पैसा आ गया। इसका असर आने वाले दिनों में बेशक दिखेगा भी। महंगाई पर रोक ना सही पर अंकुश जरूर लगेगा। लेकिन क्या 'चोर' के साथ मिल बैठकर चाय की चुस्की लेना ठीक है?
-योगेश साहू

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