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कमजोर कानून का नतीजा: नाबालिग दोषी रिहा

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प्रतीकात्‍मक फोटो निर्भया के नाबालिग दोषी की रिहाई। क्‍यों न कानून और कड़े किए जाएं ? क्या वाकई समय रहते दोषी की रिहाई के खिलाफ याचिका दाखिल नहीं की जा सकती थी ? क्या सरकार पिछले तीन साल में और भी कठोर कानून नहीं बना सकती थी? निर्भया के माता-पिता को प्रदर्शन करने से रोक जा रहा है, क्या हम कभी ये समझ भी सकते हैं कि उन पर क्या बीत रही होगी ? और तो और क्या मज़बूरी है कि पीड़िता के माता पिता को खुद अपना नाम उजागर करना पड़ रहा है। अमूमन रेप पीड़िता या उसके परिवार का नाम उजागर नहीं किया जाता है। सरकारों को सोचना चाहिए कि समय के साथ अपराध और अपराधी की सोच बदलती है, अपराध करने के तरीके बदलते हैं, इसलिए कड़े कानून बनाने चाहिए। ऐसे प्रावधान हों जिनसे कोई अपराधी कानूनी दांव-पेंच का सहारा लेकर कहीं बचकर न निकल जाए। योगेश साहू

आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...

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आज फिर आंदोलित हो उठा हूं... क्‍या आंदोलन करना सिर्फ गांधी का कर्म था...? प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर नहीं, इसीलिए खड़ा हूं...। आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...। उस रात की दास्‍तां सुनकर, दौड़ता है लहू तेज जिगर में, कारवां संग, दर्दे दिल लिए चला हूं...। आज फिर आंदोलित हो उठा हूं... बोझिल मन में उठता है द्वंद्व, रह-रहकर सालती हैं उसकी यादें, टीस लिए, अपने आप से लड़ा हूं...। आज फिर आंदोलित हो उठा हूं... कह रही है हर एक निगाह यही, जुल्‍मो-सितम अब नहीं सहेंगे, इसीलिए सबके साथ खड़ा हूं, आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...।। योगेश साहू

बिल्‍ली की अटखेलियां तो देखिए---

छोटी चोरी, बड़ा नुकसान

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प्रतीकात्मक फोटो  फॉक्सवैगन की धोखाधड़ी से आज पूरी दुनिया वाकिफ हो चुकी है। वर्जीनिया यूनिवर्सिटी से जुड़े इंजीनियर डेनियल कार्डर ने इस धोखाधड़ी का खुलासा सवा दो साल पहले ही कर दिया था। हालांकि इस मामले पर इतनी देर से कार्रवाई होने पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। वहीँ कार्डर ने इस बीच मार्गटाउन स्थित वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अल्टरनेटिव फ्यूल, इंजन एंड इमिसंस के अंतरिम निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है। पांच लोगों की टीम ने किया था खुलासा  कार्डर के नेतृत्व में वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की जिस शोध टीम ने मामले का पहली बार खुलासा किया था उसमें पांच लोग थे। इसमें कार्डर के अलावा शोध प्रोफेशर, ग्रेजुएशन के दो छात्र और एक शंकाय सदस्य शामिल थे। उन्होंने मई 2013 में शोध रिपोर्ट जमा की थी। इसकी कुल लागत 50 हजार डॉलर (33 लाख रुपये) थी। इसका भुगतान एक निजी संस्था ने किया था। प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा था कार्डर ने कहा है कि जांच के दौरान एक वाहन में प्रदूषण का स्तर मानक से 15 से 35 गुना अधिक पाया गया था।  जबकि दूसरे वाहन में यह 10 से 20 गुना ज्यादा था। कैसे पक

मटियामेट होती हिंदी

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प्रतीकात्मक फोटो  दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन का अयोजन 10 सितंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें शामिल होने वाले हैं। इस संबंध में नई जानकारी यह है कि पुणे के अनुराग गौड़ और उनके साथियों ने ट्विटर की तर्ज पर पूरी तरह हिंदी में काम करने वाली 'मूषक' नाम की सोशल नेटवर्किंग साइट पेश की है। इसे 10 सितंबर को ऑनलाइन किया जा सकता है। इन सारी खबरों और जानकारियों के बीच बड़ा सवाल यह है कि यह सब हिंदी भाषा को बढ़ावा देने में कितना कारगर साबित होगा। केंद्र सरकार हिंदी के विस्तार के लिए प्रयास कर चुकी है। दक्षिण भारत में जिसका विरोध भी हो चुका है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय मीडिया हिंदी को लेकर कितना गंभीर और जिम्मेदार है यह रोज टीवी स्क्रीन और अखबारों में छपी खबरों में दिखाई पड़ जाता है। स्वयं हम और आप अब विशुद्ध हिंदी से कोसों दूर हो चुके हैं। असल में हिंदी अब हिंग्लिश हो गई है। अंग्रेजी के शब्दों की आम बोलचाल में गहरी पैठ ने विशुद्ध हिंदी की सूरत बदल दी है। हमारे लिखने-पढऩे में भी अब वो बात नहीं रही। आजकल के किस्से-कहानियों में भी हिंग

महागठबंधन में टूट

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प्रतीकात्मक फोटो  समाजवादी पार्टी (सपा) ने अकेले अपने दम पर बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। महागठबंधन में हुई यह टूट क्‍या रंग लाएगी यह तो वक्‍त ही बताएगा, लेकिन एक बात साफ है कि बिहार का विधानसभा चुनाव रोचक होने वाला है। क्‍योंकि हर पार्टी मतदाताओं को रिझाने की पूरी तिकड़म भिड़ाने में जुट जाएंगी। नए-नए वादे करेंगी, फिर उन्‍हें पूरा करने के लिए रोडमैप बताएंगी। अब इस सब में कुछ हो न हो जनता को जरूर लाभ मिलेगा। जो जनता को रिझा पाएगा उसे सत्‍ता की चाबी सौंप दी जाएगी। उम्‍मीद है, बिहार की जनता अपने पूरे विवेक से सही फैसला लेगी। ये वक्‍त जनता के जागरूक होने का है। बिहार की जनता को चाहिए कि जाति, धर्म, समाज, समुदाय, भाई-भतीजावाद को दरकिनार कर अच्‍छी और साफ छवि के शख्‍स को अपना नेता चुने। बिहार में चुनाव की घोषणा से ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाथ झा ने राजद छोड़ दिया है। झा ने लगातार उपेक्षा को इसकी वजह बताया है। हालांकि वे लखनऊ में मुलायम सिंह से मुलाकात कर चुके हैं। वे जल्द ही सपा में शामिल होंगे। ठीक इसी समय लखनऊ में सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल य

हिंदी की बात तो होगी

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प्रतीकात्मक फोटो  अभी -अभी खबरों पर नजर दौड़ाई तो पता चला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 सितंबर को भोपाल जाने वाले हैं। मोदी यहां दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे। इसका समापन 12 सितंबर को गृह मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे और समापन सत्र में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन अपने विचार रखेंगे। क्या अद्भुत संयोग जान पड़ता है ये। खासतौर पर अपने शहर भोपाल के लिए यह एक बड़ी खबर है। क्योंकि मध्यप्रदेश की धरती वो जगह है जिसने हिन्दी भाषा (खड़ी बोली) को समृद्ध बनाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी, गजानन माधव मुक्तिबोध, कवि प्रदीप से लेकर निदा फाजली और बशीर बद्र जैसे महान लेखक दिए। जिन्होंने अपनी कलम से कई रचनाएं दीं और साहित्य की दुनिया में अलग मुकाम बनाया। राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और अमिताभ बच्चन का भोपाल या मध्यप्रदेश की धरती से क्या नाता है यह बताने की जरूरत नहीं। खैर, 1973 के बाद लगभग 32 वर्ष अंतराल पर भारत में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि इसमें 27 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे और हिंदी में विशेष योगदान के लिए भारत के 20 और विदेश क

आरक्षण असंतोष का जनक

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प्रतीकात्मक फोटो  गुजरात की भूमि से उठे आरक्षण आंदोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने अभी हाल में दिल्‍ली में कहा कि आरक्षण की वजह से देश पैंतीस साल पीछे चला गया है। यदि ऐसा ही है तो फिर देश को आगे ले जाने के लिए इस आरक्षण को ही क्‍यों न खत्‍म कर दिया जाए। वाकई, यह आरक्षण बड़ा घातक है। मैं स्‍वयं पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आता हूं। परंतु आरक्षण का लाभ बमुश्किल ही कभी मिला हो या लिया हो। हां, यह भी है कि मैं स्‍वयं कभी ऐसा लाभ लेना भी नहीं चाहता। क्‍योंकि हमेशा से दिमाग में एक ही बात रही कि जो आपकी काबिलियत है उस पर भरोसा करना चाहिए। आरक्षण का लाभ लेना मेरे लिए ठीक वैसा ही होता, जैसे परीक्षा देते समय बाजू वाले की कॉपी से नकल कर लेना और रिजल्‍ट आने पर सबसे कहना, मैंने बहुत मेहनत की थी। हां, भई नकल करने में भी बहुत मेहनत लगती है। खैर, एक बात उन लोगों के लिए भी कहना चाहूंगा जो यह कहते हैं कि आरक्षण भीख नहीं, वंचितों का अधिकार है ... बेशक अधिकार हो सकता है। लेकिन उस अधिकार का बेजा इस्‍तेमाल दूसरे के लिए तकलीफदेह हो तो वह अधिकार, अधिकार नहीं रह सकता। आरक्षण व्‍यवस्‍था कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने के ल

गोपेश खर्राटा

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अरे कोई तो रोको, कोई तो टोको, बर्तन चीख चीखकर कह रहे हैं। वैसे भी दिन में तो कोई सोता नहीं, पर जब तुम दोपहर में थोड़ी देर के लिए ही सही इस घर की देहरी लांघ जाते हो, तो हम थोड़ा आराम फर्मा लिया करते हैं। घर के दरवाजे से घुसते ही सामने रखी सभी कुर्सियां एक-दूसरे से चुहलबाजी करती हैं। उनकी बातों में मोहल्ले की महिलाओं की भांति अपनी-अपनी रामकथा है। हर कथा के बाद तुम्हारे ही घुर्राटों (खर्राटे) का जिक्र होता है, कैसे लेते हो तुम घुर्राटे। दाईं ओर बगल के रसोईघर में चूल्हे पर रखा कुकर अपनी सीटी की तेज कर्कश आवाज के बावजूद तुम्हारे खर्राटों के सामने नतमस्तक हो जाता है। अपने स्थान पर पड़े हुए वह रोज सोचा करता है कि ये खर्राटे कहां से आते हैं। ये कौन सी प्रजाति (ब्रांड) का कुकर है, जिसकी आवाज मेरी सीटी से भी तेज है। कमरे में लगा पंखा रात में अपनी स्पीड बढ़ाकर इन खर्राटों की आवाज को दबाने की नाकाम सी कोशिश करता है। कहीं, वह नट-बोल्ट ढीला होने के कारण तुम्हारे ही सिर पर आकर न गिर पड़े। यदि ऐसा हुआ तो खर्राटों की आवाज कुछ हद तक दबाने वाला इस घर का यह वीर सिपाही एक दिन शहीद हो जाएगा। और फिर

लाभ का पद

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प्रतीकात्मक फोटो  एक युवक डिग्रियां हासिल करने के बाद रोजगार के लिए संघर्ष करने लगा। चाहत थी कि कोई पद पा ले, लेकिन पद पाना कोई पिल्लों का खेल नहीं है। एडिय़ां घिस जाती हैं। युवक जोशीला था। सारे हाथ-पांव मारने के बाद उसे भगवान की याद आई। विचार करने लगा- ऐसे कौन से भगवान हैं, जो पद दिलवा सकते हैं। पद भी ऐसा जो लाभ का हो। ख्याल आया कि श्री विष्णु ही सृष्टि के कर्ता-धर्ता हैं, वे ही कुछ कर सकते हैं। तो भई लग गए तपस्या में। विष्णु जी की तपस्या भी कोई आसान नहीं थी। युवक की उम्र का यही कोई 61 वां वर्ष रहा होगा कि भगवान प्रसन्न हो गए। युवक तपस्या में लीन था। दीया फडफ़ड़ाया। अचनाक भगवान प्रकट हुए। बोले- मांगो वत्स, क्या चाहते हो? मैं तुमसे प्रसन्न हूं। युवक बोला-अब क्या मांगूं, जब आना था, तब तो आए नहीं, अब आकर बड़ा एहसान पटका है। विष्णु जी रुष्ट होकर बोले- तो अब तक तपस्या क्यों कर रहा था? युवक बोला- वह तो मैंने सोचा कि देर आयद, दुरुस्त आयद। विष्णु जी बोले- चल अब आ गया हूं तो कुछ देकर ही जाऊंगा, मांग क्या मांगता है? युवक- मांगना क्या है, कोई भी पद दे दो, जो लाभ का हो। विष्णु जी-

Thought

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सबक लें सभी देश

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प्रतीकात्मक फोटो  चीन में आर्थिक सुस्ती का असर दुनिया भर के बाजारों पर दिखाई दिया और भारतीय शेयर बाजार ने भी एक दिन में सबसे बड़ा गोता लगा लिया। सात जनवरी, 2009 के बाद प्रतिशत के लिहाज से बीएसई में 5.94 फ़ीसदी के साथ यह सबसे बड़ी गिरावट बताई जा रही है। बीएसई सोमवार को 25,741.56 पर बंद हुआ। यह घटना बताती है कि विश्‍व की सभी अर्थव्‍यवस्‍थाएं या बाजार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक की सु‍स्‍ती का असर दूसरे पर भी पड़ रहा है। सेंसेक्‍स की इस गिरावट से दुनियाभर के देशों को सबक लेने की जरूरत है, क्‍योंकि आंकड़े झूठ नहीं बोलते। इस एक घटना से सभी देशों को यह समझ लेना चाहिए कि अब समय आ गया है मिलकर काम करने का। एक-दूसरे के सहारे आगे बढ़ने का।  खैर, निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि घबराने से काम नहीं चलेगा। काम चलेगा आत्‍मविश्‍वास बनाए रखने से। क्‍योंकि कोई भी स्थिति ज्‍यादा देर तक नहीं रहती। यह दौर भी निकल जाएगा और दुनियाभर की अर्थव्‍यवस्‍थाएं फिर पटरी पर लौटेंगी। कुछ अहम तथ्‍य  सेंसेक्स गिरने के कारण  चीन के शेयर बाजार में 8.48 की गिरावट आई जिसने आठ साल का रिकॉर्

भारतीय मानस को चाहिए नई पाठशाला

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प्रतीकात्मक फोटो  भारतीय मानस को एक नई पाठशाला की जरूरत है। आप सोच रहे होंगे, नई पाठशाला भला ये क्या बला है। लेकिन जनाब यह जरूरी है। नई पाठशाला ऐसी जिसमें नए विचारों के साथ सोचने और समझने की जरूरत है। गहन अध्ययन करने की जरूरत है। क्या आपके मन में सवाल उठता है कि 'हम' यानी 'भारत' आजादी के इतने सालों बाद भी आधुनिकता में विकसित देशों से पीछे क्यों हैं? क्या हम वाकई पीछे हैं या कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें पीछे रखा जा रहा है। पहला कारण; अभी हाल के घटनाक्रम को देखें तो यह बात आपको भी सही जान पड़ेगी; अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा व्हाइट हाउस से कहते हैं कि, उन्हें डर लगता है भारत से, उसकी तरक्की से; कहीं वह तरक्की में आगे न निकल जाए। भारतीय मानस की प्रकृति निरा सपाट रही है। हमें अपनी लकीर बढ़ाने में यकीन भी है, रुचि भी है और भरोसा भी। पर दूसरे की लकीर को छोटा करना हमारी प्रकृति, संस्कार और व्यवहार का हिस्सा नहीं है। अमेरिका जैसा विकसित देश अपना पैसा दूसरे देश जाने देने से रोकना चाहता है, इसलिए दुनिया के कई देशों समेत भारत में अमेरिकी कंपनियों के कॉल सेंटरों पर खतरा मंडराने ल
जल्द ही कुछ कविताएं भी पोस्ट करूँगा। थोड़ा इंतज़ार करें.....
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