आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...
क्या आंदोलन करना सिर्फ गांधी का कर्म था...?
नहीं, इसीलिए खड़ा हूं...।
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...।
उस रात की दास्तां सुनकर,
दौड़ता है लहू तेज जिगर में,
कारवां संग, दर्दे दिल लिए चला हूं...।
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...
बोझिल मन में उठता है द्वंद्व,
रह-रहकर सालती हैं उसकी यादें,
टीस लिए, अपने आप से लड़ा हूं...।
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...
कह रही है हर एक निगाह यही,
जुल्मो-सितम अब नहीं सहेंगे,
इसीलिए सबके साथ खड़ा हूं,
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...।।
योगेश साहू
प्रतीकात्मक तस्वीर |
नहीं, इसीलिए खड़ा हूं...।
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...।
उस रात की दास्तां सुनकर,
दौड़ता है लहू तेज जिगर में,
कारवां संग, दर्दे दिल लिए चला हूं...।
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...
बोझिल मन में उठता है द्वंद्व,
रह-रहकर सालती हैं उसकी यादें,
टीस लिए, अपने आप से लड़ा हूं...।
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...
कह रही है हर एक निगाह यही,
जुल्मो-सितम अब नहीं सहेंगे,
इसीलिए सबके साथ खड़ा हूं,
आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...।।
योगेश साहू
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