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छोटी चोरी, बड़ा नुकसान

प्रतीकात्मक फोटो 
फॉक्सवैगन की धोखाधड़ी से आज पूरी दुनिया वाकिफ हो चुकी है। वर्जीनिया यूनिवर्सिटी से जुड़े इंजीनियर डेनियल कार्डर ने इस धोखाधड़ी का खुलासा सवा दो साल पहले ही कर दिया था। हालांकि इस मामले पर इतनी देर से कार्रवाई होने पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। वहीँ कार्डर ने इस बीच मार्गटाउन स्थित वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अल्टरनेटिव फ्यूल, इंजन एंड इमिसंस के अंतरिम निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है।


पांच लोगों की टीम ने किया था खुलासा 


कार्डर के नेतृत्व में वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की जिस शोध टीम ने मामले का पहली बार खुलासा किया था उसमें पांच लोग थे। इसमें कार्डर के अलावा शोध प्रोफेशर, ग्रेजुएशन के दो छात्र और एक शंकाय सदस्य शामिल थे। उन्होंने मई 2013 में शोध रिपोर्ट जमा की थी। इसकी कुल लागत 50 हजार डॉलर (33 लाख रुपये) थी। इसका भुगतान एक निजी संस्था ने किया था।



प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा था


कार्डर ने कहा है कि जांच के दौरान एक वाहन में प्रदूषण का स्तर मानक से 15 से 35 गुना अधिक पाया गया था।  जबकि दूसरे वाहन में यह 10 से 20 गुना ज्यादा था।


कैसे पकड़ी गई थी धोखाधड़ी


टीम शोध के दौरान प्रयोगशाला के साथ सड़क पर चलाकर भी वाहन का परीक्षण करती थी। ऐसे में फॉक्सवैगन के वाहनों में प्रदूषण स्तर में अंतर पाया गया। जांच में पता चला कि कंपनी ने फ्यूल इंजेक्शन में एक बदलाव कर रखा था। इसके चलते सिर्फ सड़क पर जांच में ही यह गड़बड़ी पकड़ी जा सकती थी।


पहले भी किया खुलासा


कार्डर वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की उस 15 सदस्यीय टीम का नेतृत्व कर चुके हैं जिसने वर्ष 1988 में भारी डीजल वाहनों में मानक से अधिक प्रदूषण का खुलासा किया था।

ऊपर लिखी इन सभी बातों को लिखने का तात्पर्य यह है कि इस कंपनी ने अब तक जितनी भी कारें बेची हैं, उन सभी ने वैश्विक पर्यावरण को तहस-नहस करने में अपना योगदान दिया है। वैसे तो हम इंसान रोज ही अपने पर्यावरण के संतुलन को बिगाडऩे में योगदान देते ही रहते हैं। चाहे वो नदियों में गंदगी बहा देना हो या फिर कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं या फिर सड़क पर दौड़ती बेहिसाब गाडिय़ां। ये सभी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग बढऩे से धरती पर आपदाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है।

नासा अर्थआब्जर्वेटरी ने सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों के आधार पर यह दावा किया है कि जिन इलाकों में धुआं और प्रदूषण ज्यादा होता है, वहां बादल और तूफान बनने की पूरी प्रक्रिया रुक जाती है। इससे बारिश में भारी गिरावट आती है और सूखे का खतरा बढ़ जाता है।

एेसे में मानव जाति को विकास की अंधी दौड़ में कूदने से ज्यादा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यह हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए कितनी घातक साबित हो सकती है।
                                                                                                      
                                                                                                              योगेश साहू

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