आरक्षण असंतोष का जनक
प्रतीकात्मक फोटो |
खैर, एक बात उन लोगों के लिए भी कहना चाहूंगा जो यह कहते हैं कि आरक्षण भीख नहीं, वंचितों का अधिकार है ... बेशक अधिकार हो सकता है। लेकिन उस अधिकार का बेजा इस्तेमाल दूसरे के लिए तकलीफदेह हो तो वह अधिकार, अधिकार नहीं रह सकता। आरक्षण व्यवस्था कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने के लिए की गयी थी। लेकिन अब यह सभी वर्गों को प्रभावित कर रही है। गुर्जर, जाट और अब पटेल आरक्षण आंदोलन इसके उदाहरण हैं।
अब सरकार को नई व्यवस्था करते हुए आरक्षण को आर्थिक आधार पर लाकर खड़ा करना चाहिए। यानि जिसकी वार्षिक आय दो या चार लाख कम है उसे आरक्षण दिया जाए। यह सिर्फ एक उदाहरण है इस पर देशव्यापी बहस कर एक पैमाना बनाया जा सकता है या कोई अन्य आधार तय किया जा सकता है। दूसरा यह कि आरक्षण की इस आग को बुझाने के लिए कदम सरकार के साथ आम जनता को भी उठाने होंगे। गैस सब्सिडी की तरह आरक्षण भी छोड़ने की भी शुरूआत करनी होगी। जो वर्ग उच्च शिक्षा पर खर्च करने में सक्षम है, उसे सिर्फ अपनी काबिलियत पर भरोसा कर आगे बढ़ना चाहिए।
दूसरा, अपनी शिक्षा व्यवस्था और रोजगार के अवसरों में भी देश को नए ढांचे की जरूरत है, यानि ऐसा देश जहां काबिल को उसका हक मिले। नौकरी दिलाने में रिश्वत, सिफारिश और भाई भतीजावाद न हो। सिर्फ और सिर्फ योग्य व्यक्ति को ही पद मिले, भले ही उसका धर्म कोई भी, जाति कोई भी हो। योग्यता से अलग कोई चयन मानक नहीं होना चाहिए। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कमजोर वर्ग को हमें परे कर देना है, बल्कि कमजारे वर्ग के लिए और बेहतर तरीके से सुविधाओं को बढ़ाया जाना चाहिए। ताकि उन्हें आरक्षण के लिए आंदोलन करने की आवश्यकता ही न पड़े। यदि सभी को समान अवसर मिलें तो मुझे नहीं लगता कि कोई आंदोलन की राह पकड़ेगा या किसी के मन में असंतोष पैदा होगा।
वैसे भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के संविधान का कहना है कि सभ्ाी को समान अवसर मिलने चाहिए। जबकि राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोग इस आरक्षण के मुद्दे को हवा देते रहते हैं। मेरा साफ मानना है कि आरक्षण पाने के लिए लालायित रहने से बेहतर है अपने आपको मजबूती के साथ मैदान में खड़ा करना ताकि कोई आरक्षणधारी आपको पछाड़ ही न सके।
योगेश साहू
Comments
Post a Comment
Hi, I Would Like To Read Your Words.