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महागठबंधन में टूट

प्रतीकात्मक फोटो 
समाजवादी पार्टी (सपा) ने अकेले अपने दम पर बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। महागठबंधन में हुई यह टूट क्‍या रंग लाएगी यह तो वक्‍त ही बताएगा, लेकिन एक बात साफ है कि बिहार का विधानसभा चुनाव रोचक होने वाला है। क्‍योंकि हर पार्टी मतदाताओं को रिझाने की पूरी तिकड़म भिड़ाने में जुट जाएंगी। नए-नए वादे करेंगी, फिर उन्‍हें पूरा करने के लिए रोडमैप बताएंगी। अब इस सब में कुछ
हो न हो जनता को जरूर लाभ मिलेगा। जो जनता को रिझा पाएगा उसे सत्‍ता की चाबी सौंप दी जाएगी।


उम्‍मीद है, बिहार की जनता अपने पूरे विवेक से सही फैसला लेगी। ये वक्‍त जनता के जागरूक होने का है। बिहार की जनता को चाहिए कि जाति, धर्म, समाज, समुदाय, भाई-भतीजावाद को दरकिनार कर अच्‍छी और साफ छवि के शख्‍स को अपना नेता चुने।

बिहार में चुनाव की घोषणा से ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाथ झा ने राजद छोड़ दिया है। झा ने लगातार उपेक्षा को इसकी वजह बताया है। हालांकि वे लखनऊ में मुलायम सिंह से मुलाकात कर चुके हैं। वे जल्द ही सपा में शामिल होंगे।

ठीक इसी समय लखनऊ में सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने प्रेस वार्ता में महागठबंधन से अलग होने का ऐलान किया। 30 अगस्त को पटना के गांधी मैदान में हुई स्वाभिमान रैली से महागठबंधन में दमखम दिख रहा था, लेकिन अब इस फूट ने समीकरणों के बदलने के संकेत दे दिए हैं। महागठबंधन के नेता सकते में हैं।

रघुनाथ झा का कहना है कि सपा ने सीटों के बटवारे में उपेक्षा से नाराज होकर जदयू, राजद और कांग्रेस गठबंधन से अलग होने का फैसला लिया है। अब पार्टी अपने दम पर या समान विचारधारा वाले अन्य दलों से सीटों का तालमेल कर चुनाव लड़ेगी।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) भी पहले ही अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। महागठबंधन ने 12 अगस्त को 243 सीट में से राकांपा के लिए सिर्फ तीन सीटें हीं छोड़ी थीं। जदयू और राजद ने 100-100 और कांग्रेस ने 40 सीटें ली थीं। सपा के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ी गई थी, और उस समय लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि सपा उनके समधी मुलायम सिंह यादव की पार्टी है और वह अपने हिस्से की सीट से उनकी पार्टी को सीट दे देंगे।

सीटों के बंटवारे में अनदेखी से सपा के बिहार के कार्यकर्ता बेहद नाराज थे। लालू और नीतीश को एक साथ लाने में सपा सुप्रीमो मुलायम की अहम भूमिका थी। उनके प्रयास से ही महागठबंधन ने आकार लिया था।

उम्‍मीद थी सपा को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस बारे में सपा से कोई बात तक नहीं की गई। सपा का कहना है वर्ष 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में सपा को चार सीटें मिली थीं और 58 सीटों पर उसे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। इसी तरह 2005 के नवंबर में हुए चुनाव में सपा को दो सीटों पर जीत मिली थी और 27 सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे स्थान पर थे।

सपा के प्रदेश अध्यक्ष का दावा पूरी तरह से सही नहीं है। वर्ष 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में सपा 142 सीट पर लड़ी थी और उसके चार प्रत्याशी विजयी हुए थे, जबकि 131 प्रत्याशियों ने अपनी जमानत गंवा दी थी। पार्टी को कुल छह लाख 58 हजार 791 मत मिला था, जो उसके चुनाव वाले क्षेत्र में मिले कुल मत का 4.56 प्रतिशत था। इसके बाद नवंबर 2005 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 158 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे और उसमें से दो को जीत मिली, जबकि 150 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी। इस चुनाव में सपा को कुल पांच लाख 94 हजार 266 मत मिला था, जो उसके चुनाव वाले क्षेत्र में मिले कुल मत का 3.81 प्रतिशत था।

अब नए घटनाक्रम से लालू और नीतीश को तगड़ा झटका लगा है। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी) समेत छह वामदल के साथ राकांपा गठबंधन कर चुनाव लड़ने का प्रयास कर रही है।

2010 के विधानसभा चुनाव में राकांपा 171 सीट पर लड़ी थी, उसके 168 प्रत्याशी की जमानत नहीं बची थी। उसे कुल 5 लाख 28 हजार 575 वोट मिले थे, जो उसके चुनाव वाले क्षेत्र में मिले वोट का 2.58 प्रतिशत था। सपा 146 सीट पर लड़ी और उसके सभी प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई। उसे कुल 1 लाख 60 हजार 848 वोट मिले और यह उसके चुनाव वाले क्षेत्र में मिले वोट का मात्र 0.92 प्रतिशत था।

अब नए समीकरणों के हिसाब से वोटों का बंटवारा होने से सभी दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। खास बात यह है कि मोदी लहर को बिहार में आने से रोकने के लिए बने इस महागठबंधन की टूट का लाभ कहीं चुपके से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) न भुना ले जाए।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा है कि महागठबंधन चुनाव के पहले ही बिखर गया, तो ये राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से क्या मुकाबला करेंगे। शाहनवाज ने कहा कि यह तो होना ही था।

इधर, बिहार में जदयू प्रवक्‍ता अजय आलोक कह रहे हैं हड़बड़ाने की जरूरत नहीं है। गठबंधन के बड़े नेता अभी सपा प्रमुख का फैसला बदलने की कोशिश करेंगे।

सही बात है हड़बड़ाने की जरूरत नहीं है, क्‍योंकि जनता सब देख रही है। जनता जब अपना चाबुक चलाएगी तो कुछ पांसे चारों खाने चित होंगे तो कुछ पांसे अपनी जगह पर व्‍यवस्थित हो जाएंगे। खैर चाहे जो हो, भविष्‍य में जनता की तो चांदी होने वाली है।
                                                                                                                 योगेश साहू

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