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जयललिता का सच सामने आए

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प्रतीकात्मक फोटो तमिलनाडु की 6 बार सीएम रहीं जयललिता की मौत को लेकर मीडिया में कई सवाल तैर रहे हैं। यहां तक कि अब हाईकोर्ट ने भी सवाल उठा दिए हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में जांच की मांग लेकर दायर पिटीशन पर सुनवाई करते हुए ये सवाल उठाए हैं। बेशक अपने प्रिय नेता की मौत की खबर सुनने के बाद उनके प्रशंसकों को यह जानने का पूरा हक है कि आखिर मौत हुई कैसे। जबकि सबकुछ ठीक था। जयललिता खाना खा रही थीं। सामान्य हो रही थीं। हालत में सुधार आ रहा था। फिर ऐसा क्या हुआ जो उनका निधन हो गया। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जस्टिस वैद्यनाथन ने पूछा है कि "जांच के लिए जयललिता की बॉडी को बाहर क्यों नहीं निकाला जा सकता? मौत को लेकर मीडिया ने कई सवाल उठाए हैं। हमें भी शक है। पूरी सच्चाई सामने आनी ही चाहिए।" कोर्ट ने इस मामले में पीएमओ, होम-लॉ-पॉर्लियामेंट्री मिनिस्ट्री और सीबीआई को नोटिस जारी किया है। कार्डिएक अरेस्ट से हुई मौत जस्टिस वैद्यनाथन और जस्टिस पारथिबन की वेकेशन बेंच ने AIADMK पार्टी वर्कर पीए जोसेफ की पीआईएल पर सुनवाई की है। कोर्ट ने जयललिता को लेकर सीक्रेसी बरतने पर अपनी नाखु

नोटबंदी : गोलगप्पे के साथ गप्पें गोल

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प्रतीकात्मक फोटो नोटबंदी की चर्चा इन दिनों हर जगह है। कहा जा रहा है कालाधन निकलेगा। पर जो खबरें सामने आ रही हैं उनसे तो लगता है कि कालाधन और बढ़ गया है। आए दिन नए नोटों की खेप पकड़ी जा रही हैं। खैर, इस सब के बीच हमारे चुन्नू भइया काफी परेशान हैं। चुन्नू भइया गोलगप्पों के बड़े शौकीन हैं। शौक भी ऐसा कि दिन का खाना छोड़ गोलगप्पों से पेट भर लें और डकार भी न लें। यार-दोस्तों से मिलते हैं तो बस गोलगप्पे के ठेले पर महफिल जम जाती है। फिर तो बस गोलगप्पे पे गोलगप्पे आने दो बस।  चुन्नू भइया, नोटबंदी के बाद से परेशान इसलिए हैं कि पहले तो जेब भरी रहती थी। अब खाली है, क्योंकि एटीएम से नोट नहीं मिल रहे हैं। और तो और उनके यार-दोस्त भी कम खर्चीले नहीं थे। जेब में पैसा हो तो चवन्नी बचे रहने तक की परवाह नहीं करते। तो साहब, चुन्नू भइया का रोज की महफिल गोलगप्पे के ठेले पर चलती थी। महफिल में गोलगप्पों के साथ खूब गप्पें लगतीं। राजनीति से लेकर देश-दुनिया और समाज यहां तक कि प्रीत, प्रेम, प्यार, वासना के फर्क तक गोलगप्पों के साथ गोल-गोल हुए जाते और चटखारेदार पानी की तरह ज्ञान पीते-पिलाते जाते। 

नोटबंदी: चोर, चाय की चुस्की, बस चार साल चक्कर

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प्रतीकात्मक फोटो नोटबंदी क्या लागू हुई मानो इंसानी आफत टूट पड़ी। जी हां, जहां देखो नोटबंदी की चर्चा। कमाल ऊपर से ये कि कोई विरोध करे भी तो कैसे और कितना करे? खैर, राजनीतिक दलों ने तो फिर भी विरोध कर लिया पर आम आदमी ने चुपचाप इस फैसले को स्वीकार कर लिया। आखिर मरता क्या ना करता। भई, मेहनत से कमाए अपने पैसे जो हैं। ऊपर से देशभक्ति दिखाना आजकल शगल बन गया है। चलो ये सारी परेशानियां तो ठीक हैं। पर एक बात है जो पच नहीं रही है। बात ये कि सरकार कह रही है, जिसने कालाधन कमाया है खुद ही आकर 50 प्रतिशत सामने रख दे। बाकी 50 प्रतिशत ले जाए। वाह। क्या गजब की तरकीब है। चोर, चोरी करे और आधा माल कोतवाल के सामने पेश कर दे। न सजा न कोर्ट-कचहरी का झंझट। क्या करें साहब अपने देश में कहावत ही यही है कि- बाप बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया। आमधारणा है कि चोर चोरी करे और पकड़ा ना जाए, तो चोर नहीं। सरकार ने भी ऐसा ही तरीका अपनाया है। चोर चोरी करे माल में हिस्सा दे और सजा भी ना पाए। जो सजा मिले भी तो मामूली। (यहां एक उदाहरण देना चाहूंगा कि किसी ने 1 करोड़ रुपये कालाधन कमाया। कालाधन मतलब चोरी का पैसा भाईलोग

दो दिन में दो बदलावों ने बदल दी 'दुनिया'

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आज पूरी दुनिया दो बदलावों से हैरान है। पहला भारत में बड़े नोटों का बंद होना और दूसरा अमेरिका में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत। पिछले दो दिन में हुए इन दो बदलावों ने दुनिया को भी बदल दिया है। आने वाले समय में इन दो बदलावों से दुनिया और भी बदलेगी। इसके कारण कुछ इस प्रकार से हो सकते हैं... ट्रंप की जीत से क्या बदलाव होंगे प्रतीकात्मक फोटो अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत को कई तरह से देखा जा रहा है। जैसे कि इस जीत को भारत के लिए अच्छा और पाकिस्तान के लिए बुरा कहा जा रहा है। हालांकि ट्रंप की जीत से पूरी दुनिया हैरान है। हो भी क्यों न, इस जीत से पूरी दुनिया प्रभावित होगी। ठीक वैसे ही जैसे भारत में बड़े नोट के बंद होने की खबर से दुनियाभर के शेयर बाजार प्रभावित हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप की जीत से पूरी दुनिया की विदेश नीतियों पर असर पड़ेगा। खुद अमेरिका की विदेश नीति भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रहेगी। ट्रंप को इस्लामिक विरोधी माना जाता है। ऐसे में देश-दुनिया के तमाम इस्लामिक देशों पर असर पड़ेगा। उनके साथ अमेरिका अपने हितों के नजरिए से ही संबंध निभाता रहा है और अब तो ट्रंप के आने से

सुप्रीम कोर्ट का सख्त होता लहजा

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प्रतिकात्मक तस्वीर लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता बरकरार रहना बेहद जरूरी होता है। भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में तो यह और भी जरूरी हो जाता है। वैसे भारत में कई मौकों पर कार्यपालिका और न्यायापलिका में टकराव की स्थिति भी बनती रही है। ऐसे कई उदाहरण भी हैं। खैर, हाल के दिनों में देखने में आया है कि न्यायापालिका यानि देश की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट का लहजा कुछ सख्त होता जा रहा है। शीर्ष कोर्ट की पिछले कुछ समय में आईं तीखी टिप्पणियां इसी ओर इशारा करती हैं। सुप्रीम कोर्ट का सख्त होना बेहतरी का संकेत भी माना जा सकता है। क्योंकि जिस तरह के आंतरिक और बाह्य हालात वर्तमान में देश के सामने हैं उनमें किसी एक स्तंभ का मजबूती से अपनी जगह टिके रहना बेहद जरूरी है। खास तौर पर आंतरिक हालात पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए तो यह और भी जरूरी हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट एक ऐसी संस्था है जो हर भारतीय नागरिक को न्याय दिलाने के अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। हालांकि इसके बावजूद भी न्याय हर नागरिक की पहुंच में है, ऐसा कहना और दावा करना अतिश्योक्ति होगी। क्योंकि क

सर्जिकल स्ट्राइक: हर जवान अपना कर्तव्य निभाता है

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प्र‍तीकात्‍मक तस्‍वीर बड़ी खुशी की बात है, भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक से अपने अट्ठारह जवानों का बदला उन आतंकियों से ले लिया है। जिन्होंने अपने चंद घुसपैठियों को भेजा था। लेकिन एक बात मेरे मन में तैर रही है कि क्या जवानों के शहीद होने का ये सिलसिला कभी थमेगा? दिल से तो यही आवाज आती है कि किसी जवान की शहादत नहीं होनी चाहिए। हर जवान अपना कर्तव्य को निभाता है। वो भी पूरी मुश्तैदी के साथ। चाहे फिर वो हमारा भारतीय जवान हो या पाकिस्तान का या फिर दुनियाभर में किसी और देश का। भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक में आतंकियों के मारे जाने का किसी को अफसोस नहीं है, हो भी नहीं सकता और कतई होना भी नहीं चाहिए। हालांकि पाकिस्तान ने कहा है कि भारत की ओर से हुई गोलीबारी में उसके दो जवान शहीद हुए हैं। यदि यह बात सच है तो आज उन जवानों के परिवार में भी ठीक वैसा ही मातम होगा जैसा हमारे अट्ठारह जवानों के शहीद होने पर उनके घरों और देश में था। यहां एक कहावत भी याद आती है ‘करे कोई, भरे कोई।’ घुसपैठी आतंकियों की करतूत ने भारत को नुकसान पहुंचाया और भारत की कार्रवाई ने पाकिस्तान को। इस संघर्ष में आखिरकार जान गंवाई हमारे

ग्लूकोमा: सावधानी ही बचाएगी अंधेपन से

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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर ग्लूकोमा यानि काला मोतिया आंखों की एक बेहद गंभीर बीमारी मानी जाती है। इससे कई बार आंखों की रोशनी भी चली जाती है। नीचे दिए गए विवरण से आप जान सकते हैं कि आप अपनी आंखों को सेहतमंद कैसे रखें..... मौजूदा दौर में कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल रोजमर्रा की जरूरत बन गए हैं। इनमें से किसी पर भी काम करते समय हमारी आंखों पर बहुत दबाव पड़ता है, लेकिन हम इसे गंभीरता से नहीं लेते। आंखों से संबंधित परेशानियों की अनदेखी और लापरवाही समय के साथ आगे चलकर धीरे-धीरे ग्लूकोमा जैसी गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है, जिससे आंखों की रोशनी तक जा सकती है। ग्लूकोमा क्या है ग्लूकोमा आंखों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव की वजह से होता है। यह ऐसी बीमारी है, जिसमें आंख के अंदर के पानी का दबाव धीरे-धीरे बढ़ जाता है। इससे देखने में परेशानी होने लगती है या दिखना भी बंद हो सकता है। समय से जांच और इलाज कराने से अंधेपन से बचा जा सकता है। क्यों होता है ग्लूकोमा हमारी आंखों में मौजूद लेंस के आगे की जगह को इंटीरियर चेंबर कहते हैं। इसमें मौजूद पानी को एकुअस ह्यूमर कहा जाता है। एकुअस ह्यूमर लेंस और कोर्

एक तस्वीर

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कहते हैं कि एक तस्वीर एक हजार शब्दों के बराबर होती है। यानि कि बिना कुछ कहे सबकुछ बयां कर देती है। 

उत्‍तराखंड का लोक नृत्‍य...

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उत्‍तराखंड के राजभवन में पिछले दिनों लगी पुष्‍प प्रदर्शनी के दौरान सांस्‍कृतिक नृत्‍य की शानदार प्रस्‍तुति दी गई। यह वीडियो देखें..... बिल्‍ली की अटखेलियां तो देखिए--- फॉक्सवैगन की छोटी चोरी, बड़ा नुकसान मटियामेट होती हिंदी आरक्षण असंतोष का जनक गोपेश खर्राटा लाभ का पद सेंसेक्‍स से सबक लें सभी देश भारतीय मानस को चाहिए नई पाठशाला खो गई वो डायरी... कमजोर कानून का नतीजा: नाबालिग दोषी रिहा आज फिर आंदोलित हो उठा हूं... जानवरों को अपना दूध पिलाकर पालते हैं ये लोग

खो गई वो डायरी...

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प्रतीकात्मक फोटो  खो गई वो डायरी, थी जिसमें मेरी शायरी।। सुन सखी, तुझे बताऊं, याद बलम की आय री।। खो गई वो डायरी... बात कहूं इक मेरे मन की, प्रेम मगन को दुनिया बड़ा सताए री।। खो गई वो डायरी... अपने आंगन की चंचल चिडि़या, पंख फैले, सो ही उड़ जाए री।। खो गई वो डायरी... आपाधापी दुनिया भर की, साथ कौन वहां ले जाए री।। खो गई वो डायरी... - योगेश साहू