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सुप्रीम कोर्ट का सख्त होता लहजा

प्रतिकात्मक तस्वीर
लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता बरकरार रहना बेहद जरूरी होता है। भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में तो यह और भी जरूरी हो जाता है। वैसे भारत में कई मौकों पर कार्यपालिका और न्यायापलिका में टकराव की स्थिति भी बनती रही है। ऐसे कई उदाहरण भी हैं।
खैर, हाल के दिनों में देखने में आया है कि न्यायापालिका यानि देश की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट का लहजा कुछ सख्त होता जा रहा है। शीर्ष कोर्ट की पिछले कुछ समय में आईं तीखी टिप्पणियां इसी ओर इशारा करती हैं। सुप्रीम कोर्ट का सख्त होना बेहतरी का संकेत भी माना जा सकता है। क्योंकि जिस तरह के आंतरिक और बाह्य हालात वर्तमान में देश के सामने हैं उनमें किसी एक स्तंभ का मजबूती से अपनी जगह टिके रहना बेहद जरूरी है। खास तौर पर आंतरिक हालात पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए तो यह और भी जरूरी हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट एक ऐसी संस्था है जो हर भारतीय नागरिक को न्याय दिलाने के अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। हालांकि इसके बावजूद भी न्याय हर नागरिक की पहुंच में है, ऐसा कहना और दावा करना अतिश्योक्ति होगी। क्योंकि किन्हीं कारणों से सभी तक न्याय नहीं पहुंच पाता। इस बात की तस्दीक अलग-अलग समय में सुप्रीम कोर्ट में रहे मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश करते रहे हैं और कर रहे हैं।
हाल ही में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और सुप्रीम कोर्ट के बीच लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लेकर हुई तकरार भी काफी हद तक न्याय व्यवस्था में आम नागरिक के भरोसे को बढ़ाती है। सुप्रीम कोर्ट ने जो बीसीसीआई के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है उससे तो यही जान पड़ता है।
खैर, आगे-आगे देखिए और होता है क्या?
                                                                                          -योगेश साहू

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