Posts

Showing posts from August, 2015

Amazon

Amazon
Shop Now ON Amazon

आरक्षण असंतोष का जनक

Image
प्रतीकात्मक फोटो  गुजरात की भूमि से उठे आरक्षण आंदोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने अभी हाल में दिल्‍ली में कहा कि आरक्षण की वजह से देश पैंतीस साल पीछे चला गया है। यदि ऐसा ही है तो फिर देश को आगे ले जाने के लिए इस आरक्षण को ही क्‍यों न खत्‍म कर दिया जाए। वाकई, यह आरक्षण बड़ा घातक है। मैं स्‍वयं पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आता हूं। परंतु आरक्षण का लाभ बमुश्किल ही कभी मिला हो या लिया हो। हां, यह भी है कि मैं स्‍वयं कभी ऐसा लाभ लेना भी नहीं चाहता। क्‍योंकि हमेशा से दिमाग में एक ही बात रही कि जो आपकी काबिलियत है उस पर भरोसा करना चाहिए। आरक्षण का लाभ लेना मेरे लिए ठीक वैसा ही होता, जैसे परीक्षा देते समय बाजू वाले की कॉपी से नकल कर लेना और रिजल्‍ट आने पर सबसे कहना, मैंने बहुत मेहनत की थी। हां, भई नकल करने में भी बहुत मेहनत लगती है। खैर, एक बात उन लोगों के लिए भी कहना चाहूंगा जो यह कहते हैं कि आरक्षण भीख नहीं, वंचितों का अधिकार है ... बेशक अधिकार हो सकता है। लेकिन उस अधिकार का बेजा इस्‍तेमाल दूसरे के लिए तकलीफदेह हो तो वह अधिकार, अधिकार नहीं रह सकता। आरक्षण व्‍यवस्‍था कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने के ल

गोपेश खर्राटा

Image
अरे कोई तो रोको, कोई तो टोको, बर्तन चीख चीखकर कह रहे हैं। वैसे भी दिन में तो कोई सोता नहीं, पर जब तुम दोपहर में थोड़ी देर के लिए ही सही इस घर की देहरी लांघ जाते हो, तो हम थोड़ा आराम फर्मा लिया करते हैं। घर के दरवाजे से घुसते ही सामने रखी सभी कुर्सियां एक-दूसरे से चुहलबाजी करती हैं। उनकी बातों में मोहल्ले की महिलाओं की भांति अपनी-अपनी रामकथा है। हर कथा के बाद तुम्हारे ही घुर्राटों (खर्राटे) का जिक्र होता है, कैसे लेते हो तुम घुर्राटे। दाईं ओर बगल के रसोईघर में चूल्हे पर रखा कुकर अपनी सीटी की तेज कर्कश आवाज के बावजूद तुम्हारे खर्राटों के सामने नतमस्तक हो जाता है। अपने स्थान पर पड़े हुए वह रोज सोचा करता है कि ये खर्राटे कहां से आते हैं। ये कौन सी प्रजाति (ब्रांड) का कुकर है, जिसकी आवाज मेरी सीटी से भी तेज है। कमरे में लगा पंखा रात में अपनी स्पीड बढ़ाकर इन खर्राटों की आवाज को दबाने की नाकाम सी कोशिश करता है। कहीं, वह नट-बोल्ट ढीला होने के कारण तुम्हारे ही सिर पर आकर न गिर पड़े। यदि ऐसा हुआ तो खर्राटों की आवाज कुछ हद तक दबाने वाला इस घर का यह वीर सिपाही एक दिन शहीद हो जाएगा। और फिर

लाभ का पद

Image
प्रतीकात्मक फोटो  एक युवक डिग्रियां हासिल करने के बाद रोजगार के लिए संघर्ष करने लगा। चाहत थी कि कोई पद पा ले, लेकिन पद पाना कोई पिल्लों का खेल नहीं है। एडिय़ां घिस जाती हैं। युवक जोशीला था। सारे हाथ-पांव मारने के बाद उसे भगवान की याद आई। विचार करने लगा- ऐसे कौन से भगवान हैं, जो पद दिलवा सकते हैं। पद भी ऐसा जो लाभ का हो। ख्याल आया कि श्री विष्णु ही सृष्टि के कर्ता-धर्ता हैं, वे ही कुछ कर सकते हैं। तो भई लग गए तपस्या में। विष्णु जी की तपस्या भी कोई आसान नहीं थी। युवक की उम्र का यही कोई 61 वां वर्ष रहा होगा कि भगवान प्रसन्न हो गए। युवक तपस्या में लीन था। दीया फडफ़ड़ाया। अचनाक भगवान प्रकट हुए। बोले- मांगो वत्स, क्या चाहते हो? मैं तुमसे प्रसन्न हूं। युवक बोला-अब क्या मांगूं, जब आना था, तब तो आए नहीं, अब आकर बड़ा एहसान पटका है। विष्णु जी रुष्ट होकर बोले- तो अब तक तपस्या क्यों कर रहा था? युवक बोला- वह तो मैंने सोचा कि देर आयद, दुरुस्त आयद। विष्णु जी बोले- चल अब आ गया हूं तो कुछ देकर ही जाऊंगा, मांग क्या मांगता है? युवक- मांगना क्या है, कोई भी पद दे दो, जो लाभ का हो। विष्णु जी-

Thought

Image

सबक लें सभी देश

Image
प्रतीकात्मक फोटो  चीन में आर्थिक सुस्ती का असर दुनिया भर के बाजारों पर दिखाई दिया और भारतीय शेयर बाजार ने भी एक दिन में सबसे बड़ा गोता लगा लिया। सात जनवरी, 2009 के बाद प्रतिशत के लिहाज से बीएसई में 5.94 फ़ीसदी के साथ यह सबसे बड़ी गिरावट बताई जा रही है। बीएसई सोमवार को 25,741.56 पर बंद हुआ। यह घटना बताती है कि विश्‍व की सभी अर्थव्‍यवस्‍थाएं या बाजार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक की सु‍स्‍ती का असर दूसरे पर भी पड़ रहा है। सेंसेक्‍स की इस गिरावट से दुनियाभर के देशों को सबक लेने की जरूरत है, क्‍योंकि आंकड़े झूठ नहीं बोलते। इस एक घटना से सभी देशों को यह समझ लेना चाहिए कि अब समय आ गया है मिलकर काम करने का। एक-दूसरे के सहारे आगे बढ़ने का।  खैर, निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि घबराने से काम नहीं चलेगा। काम चलेगा आत्‍मविश्‍वास बनाए रखने से। क्‍योंकि कोई भी स्थिति ज्‍यादा देर तक नहीं रहती। यह दौर भी निकल जाएगा और दुनियाभर की अर्थव्‍यवस्‍थाएं फिर पटरी पर लौटेंगी। कुछ अहम तथ्‍य  सेंसेक्स गिरने के कारण  चीन के शेयर बाजार में 8.48 की गिरावट आई जिसने आठ साल का रिकॉर्

भारतीय मानस को चाहिए नई पाठशाला

Image
प्रतीकात्मक फोटो  भारतीय मानस को एक नई पाठशाला की जरूरत है। आप सोच रहे होंगे, नई पाठशाला भला ये क्या बला है। लेकिन जनाब यह जरूरी है। नई पाठशाला ऐसी जिसमें नए विचारों के साथ सोचने और समझने की जरूरत है। गहन अध्ययन करने की जरूरत है। क्या आपके मन में सवाल उठता है कि 'हम' यानी 'भारत' आजादी के इतने सालों बाद भी आधुनिकता में विकसित देशों से पीछे क्यों हैं? क्या हम वाकई पीछे हैं या कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें पीछे रखा जा रहा है। पहला कारण; अभी हाल के घटनाक्रम को देखें तो यह बात आपको भी सही जान पड़ेगी; अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा व्हाइट हाउस से कहते हैं कि, उन्हें डर लगता है भारत से, उसकी तरक्की से; कहीं वह तरक्की में आगे न निकल जाए। भारतीय मानस की प्रकृति निरा सपाट रही है। हमें अपनी लकीर बढ़ाने में यकीन भी है, रुचि भी है और भरोसा भी। पर दूसरे की लकीर को छोटा करना हमारी प्रकृति, संस्कार और व्यवहार का हिस्सा नहीं है। अमेरिका जैसा विकसित देश अपना पैसा दूसरे देश जाने देने से रोकना चाहता है, इसलिए दुनिया के कई देशों समेत भारत में अमेरिकी कंपनियों के कॉल सेंटरों पर खतरा मंडराने ल
जल्द ही कुछ कविताएं भी पोस्ट करूँगा। थोड़ा इंतज़ार करें.....
welcome to my blog