आरक्षण असंतोष का जनक
प्रतीकात्मक फोटो गुजरात की भूमि से उठे आरक्षण आंदोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने अभी हाल में दिल्ली में कहा कि आरक्षण की वजह से देश पैंतीस साल पीछे चला गया है। यदि ऐसा ही है तो फिर देश को आगे ले जाने के लिए इस आरक्षण को ही क्यों न खत्म कर दिया जाए। वाकई, यह आरक्षण बड़ा घातक है। मैं स्वयं पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आता हूं। परंतु आरक्षण का लाभ बमुश्किल ही कभी मिला हो या लिया हो। हां, यह भी है कि मैं स्वयं कभी ऐसा लाभ लेना भी नहीं चाहता। क्योंकि हमेशा से दिमाग में एक ही बात रही कि जो आपकी काबिलियत है उस पर भरोसा करना चाहिए। आरक्षण का लाभ लेना मेरे लिए ठीक वैसा ही होता, जैसे परीक्षा देते समय बाजू वाले की कॉपी से नकल कर लेना और रिजल्ट आने पर सबसे कहना, मैंने बहुत मेहनत की थी। हां, भई नकल करने में भी बहुत मेहनत लगती है। खैर, एक बात उन लोगों के लिए भी कहना चाहूंगा जो यह कहते हैं कि आरक्षण भीख नहीं, वंचितों का अधिकार है ... बेशक अधिकार हो सकता है। लेकिन उस अधिकार का बेजा इस्तेमाल दूसरे के लिए तकलीफदेह हो तो वह अधिकार, अधिकार नहीं रह सकता। आरक्षण व्यवस्था कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने के ल