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Showing posts from December, 2015

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कमजोर कानून का नतीजा: नाबालिग दोषी रिहा

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प्रतीकात्‍मक फोटो निर्भया के नाबालिग दोषी की रिहाई। क्‍यों न कानून और कड़े किए जाएं ? क्या वाकई समय रहते दोषी की रिहाई के खिलाफ याचिका दाखिल नहीं की जा सकती थी ? क्या सरकार पिछले तीन साल में और भी कठोर कानून नहीं बना सकती थी? निर्भया के माता-पिता को प्रदर्शन करने से रोक जा रहा है, क्या हम कभी ये समझ भी सकते हैं कि उन पर क्या बीत रही होगी ? और तो और क्या मज़बूरी है कि पीड़िता के माता पिता को खुद अपना नाम उजागर करना पड़ रहा है। अमूमन रेप पीड़िता या उसके परिवार का नाम उजागर नहीं किया जाता है। सरकारों को सोचना चाहिए कि समय के साथ अपराध और अपराधी की सोच बदलती है, अपराध करने के तरीके बदलते हैं, इसलिए कड़े कानून बनाने चाहिए। ऐसे प्रावधान हों जिनसे कोई अपराधी कानूनी दांव-पेंच का सहारा लेकर कहीं बचकर न निकल जाए। योगेश साहू

आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...

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आज फिर आंदोलित हो उठा हूं... क्‍या आंदोलन करना सिर्फ गांधी का कर्म था...? प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर नहीं, इसीलिए खड़ा हूं...। आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...। उस रात की दास्‍तां सुनकर, दौड़ता है लहू तेज जिगर में, कारवां संग, दर्दे दिल लिए चला हूं...। आज फिर आंदोलित हो उठा हूं... बोझिल मन में उठता है द्वंद्व, रह-रहकर सालती हैं उसकी यादें, टीस लिए, अपने आप से लड़ा हूं...। आज फिर आंदोलित हो उठा हूं... कह रही है हर एक निगाह यही, जुल्‍मो-सितम अब नहीं सहेंगे, इसीलिए सबके साथ खड़ा हूं, आज फिर आंदोलित हो उठा हूं...।। योगेश साहू