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पिंकू की प्रेरणा 3

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प्रतीकात्मक फोटो पिंकू को यहां-वहां खुरपी मारते हुए थोड़ा समय बीत जाने के बाद आखिरकार रामसुख ने अपना सवाल दाग ही दिया। उसने पूछा- आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? पिंकू ने तपाक से कहा- बड़ा होकर मैं माली बनूंगा। ये सुनते ही रामसुख एक पल को अवाक रह गया। उसने पिंकू से कहा- नहीं भइया, माली मत बनना। रामसुख की इस बात के पीछे एक अलग ही मर्म छिपा हुआ था। क्योंकि जवाब देने से ठीक पहले उसके जहन में वो सभी कारण उठ खड़े हुए थे, जो चाहते थे कि वो पिंकू से साफ कहे कि जीवन में कुछ भी बनना पर माली मत बनना। रामसुख को लोग फूल उगाते, पौधों को खाद-पानी देते और मिट्टी को संवारते हुए देखते हैं। लेकिन वे यह नहीं जानते कि इसमें कितनी मेहनत लगती है। कितना कष्ट सहना पड़ता है। खैर, इसके बावजूद फूल, पेड़-पौधों की सेवा करके मन तो भर जाता है पर पेट का क्या करें। इसे कहां ले जाएं। फिर घर में बच्चे भी तो हैं, मां-बहन और पत्नी भी तो है। इतनी कड़ी मेहनत के बाद भी उनके लिए दो निवाले जुटाना भी कितना दुश्वार है, यह सिर्फ रामसुख ही जानता है। क्योंकि कई रातें उसने पानी पीकर ही गुजारी हैं। रामसुख के जोर देकर नहीं

पिंकू की प्रेरणा 2

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प्रतीकात्मक फोटो बगीचे को सजाने में रामसुख की मेहनत साफ दिखाई देती थी। वह मन लगाके काम किया करता था। बहरहाल, पिंकू लकड़ी के टुकड़े पर बैठा रामसुख की तरफ देख रहा था, वह जानना चाहता था कि बगीचे में काम कैसे होता है। हालांकि इसके पीछे उसके बाल मन की जमीन में खुद अपने हाथों से खुरपी चलाने की खुराफाती सोच थी।  पिंकू चाहता था कि वह खुरपी लेकर जमीन खोदे और इस काम में उसे कितना मजा आएगा। यही सोच-सोचकर वह मंद-मंद मुस्कुरा भी रहा था। रामसुख ने भी उसके मन की बात उसके चेहरे पर पढ़ ली थी, फिर भी कुछ नहीं कहा और अपने काम में जुटा रहा।  थोड़ी देर बात जब पिंकू के सब्र का बांध टूटने सा लगा तो खुद ही तपाक से बोला, रामसुख चाचा ये खुरपी ऐसे क्यों चलाते हैं, क्या तुम मुझे सिखा दोगे। रामसुख ने पिंकू की तरफ देखा और एक गहरी सांस लेकर कहा- अरे बेटा तुम क्यों ये सब करना चाहते हो। अच्छे से पढ़ो-लिखो और बड़े अफसर बनो। इस मिट्टी में तुम्हारे लिया क्या रखा है। देखो कपड़े तक गंदे (अपने कपड़े दिखाते हुए) हो जाते हैं।  पिंकू ने ये बातें सुन तो लीं, लेकिन वो मानने वाला कहां था। उसे तो खुरपी चलाने के ल