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पिंकू की प्रेरणा 1

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प्रतीकात्मक फोटो बात उन दिनों की है जब रामसुख जीवन के मध्य पड़ाव में था। आज के हिसाब से यदि इंसान की औसत उम्र साठ बरस की मानें तो वह यही कोई तीस से पैंतीस बरस के बीच रहा होगा। क्योंकि उसके जनम की सही-सही तारीख तो खुद उसे भी नहीं मालूम थी। उसकी मां विमला कहती थीं कि जिस साल इंदिरा गांधी मरीं, उसी साल तेरा जनम हुआ, जब गर्मियां बीत गई थीं और सर्द रातों का मौसम अपनी बाल अवस्था में था। रामसुख कहने को तो माली का काम करता था। लेकिन उसकी बातें बड़े दार्शनिकों जैसी थीं। क्योंकि उसने जिंदगी के फलसफे को बेहद गहराई से समझ लिया था। एक बात और, उसे बच्चों से बड़ा लगाव था। उनके साथ खेलने, हंसने-बोलने में उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती थी। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। खैर, एक दिन रामसुख अपने मालिक गौतम के बगीचे में पौधों को पानी दे रहा था। तभी उसके सिर पर कोई चीज जोर से टकराई, एक पल को तो वह जमीन पर गिरने ही वाला था, पर अपने आपको संभाल लिया।  पीछे से सॉरी अंकल, सॉरी अंकल कहते हुए पिंकू दौड़ता हुआ उसके पास आकर रुका और पूछने लगा कि कहीं आपको चोट तो नहीं लगी। रामसुख ने कहा, नहीं पिंकू